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________________ संख्या १] सम्पादकीय नोट संयुक्त-प्रान्त में हिन्दी और उर्दू राष्ट्र-भाषा का प्रश्न प्रान्तीय सरकार की शासन-रिपोर्ट अभी हाल में निकली अभी तक हिन्दीवालों की यही धारणा थी कि है। उससे प्रकट होता है कि रिपोर्ट के साल हिन्दी में राष्ट्र-भाषा का प्रश्न तय हो गया है और हिन्दी भारत की २,२४०, उर्दू में ३७८ और संस्कृत में १२८ पुस्तकें राष्ट्र-भाषा के रूप में स्वीकार कर ली गई है । परन्तु प्रकाशित हुई। और इन पुस्तकों की एक तिहाई पुस्तकें जान पड़ता है कि यह प्रश्न अभी तय नहीं हुआ है और कविता में निकलीं, शेष गद्य में निकलीं, जिनमें ५०५ हिन्दीवाले भ्रम में रहे हैं । इन्दौर के सम्मेलन के १६ वें भाषा की, ३३२ धर्म-विषयक, २२७ उपन्यास, २८६ प्रस्ताव-द्वारा इस मामले पर पूरा प्रकाश पड़ता है । उस प्रकृति-विज्ञान, गणित तथा यंत्र-विज्ञान-विषयक तथा प्रस्ताव में कहा गया है कि इस सम्बन्ध में 'हिन्दुस्तान के २०७ इतिहास एवं भूगोल-सम्बन्धी पुस्तकें निकलीं। भिन्न भिन्न प्रान्तों में कुछ ग़लतफ़हमी फैली हुई है', अतएव रिपोर्ट में उर्दू की पुस्तकों के सम्बन्ध में लिखा गया 'यह सम्मेलन घोषित करता है कि राष्ट्र-भाषा की दृष्टि से है कि गुण और परिमाण की दृष्टि से उर्दू इस वर्ष गिरी हिन्दी का वह स्वरूप मान्य समझा जाय जो हिन्दू-मुसलरही । परन्तु हिन्दी के ग्रन्थ-प्रणेताओं ने मुस्तैदी दिखाई है मान आदि सब धर्मों के ग्रामीण और नागरिक व्यवहार और उन्होंने विज्ञान, कृषि, पशु-विज्ञान, प्रसूतिशास्त्र, करते हैं, जिसमें रूढ़ सर्वसुलभ अरबी, फारसी, अँगरेज़ी स्वास्थ्य, ग्रामसुधार तथा चरित-विषयक ग्रन्थों की रचना या संस्कृत शब्दों या मुहाविरों का बहिष्कार न हो और की ओर विशेष ध्यान दिया है। जो नागरी या उर्दू लिपि में लिखी जाती हो ।' ___ समाचार-पत्रों तथा मासिक-पत्रों की संख्या ६६६ सम्मेलन की इस घोषणा का यह मतलब निकलता बताई गई है, जिनमें ६१ नये हैं । इनमें २७ दैनिक, ८ है कि वह वर्तमान साहित्यिक हिन्दी या उर्दू को राष्ट्र-भाषा अर्द्ध साप्ताहिक, २३१ साप्ताहिक और २५६ मासिक हैं। नहीं स्वीकार करता, किन्तु उसके लिए एक ऐसी भाषा का इनमें ६२ अँगरेज़ी के, २६५ उर्दू के और २३३ संकेत करता है जिसको अभी कोई साहित्यिक रूप नहीं हिन्दी के हैं । इनमें से २ अँगरेज़ी के, ३ उर्दू के और प्राप्त हुआ है, पर सब धर्मों के लोग जिसका बोलचाल में ६ हिन्दी के पत्रों में से प्रत्येक की ग्राहक-संख्या ४ हज़ार व्यवहार करते हैं । एक शब्द में उसका नाम 'हिन्दुस्तानी' से ऊपर है । इसी तरह ३ अँगरेज़ी के, ४ उर्दू के और या 'हिन्दोस्तानी' हो सकता है। प्रयाग की 'हिन्दुस्तानी ११ हिन्दी के पत्रों में से प्रत्येक की ग्राहक संख्या दो हज़ार एकेडमी' का भी यही उद्देश है और उसके प्रधान सर से चार हज़ार तक है । ५३.४ फ़ी सदी हिन्दू, ४१.२ फी तेजबहादुर सपू ने भी अभी हाल में लन्दन में अपने एक सदी मुसलमान तथा ५.४ फ़ी सदी ईसाई सम्पादक उप- भाषण में उक्त घोषणा जैसी ही बात कही है । 'सम्मेलन' ने युक्त पत्रों का सम्पादन करते हैं । यह विवरण कहाँ तक अपनी घोषणा से इस सम्बन्ध की 'ग़लतफ़हसी' दूर करके सन्तोषप्रद है, यह विचारणीय है। भले हिन्दी या बहुत अच्छा काम किया है । आशा है, हिन्दीवालों का उर्दूवाले अपने अपने प्रकाशन के प्रतिवर्ष बढ़ते हुए भ्रम दूर हो जायगा और वे यह बात गाँठ बाँध रक्खेंगे आँकड़ों को देखकर अपने अपने साहित्य की उन्नति का कि उनकी 'हिन्दी' 'हिन्दुस्तान' की राष्ट्र-भाषा नहीं है, दम्भ किया करें, परन्तु यहाँ की जन-संख्या और संस्कृति किन्तु वह भाषा राष्ट्र-भाषा होगी जिसे सब धर्मों के ग्रामीण को देखते हुए उनके ये आँकड़े कुछ भी नहीं हैं। इन और नागरिक व्यवहार में लाते हैं तथा जो हिन्दी या उर्दू आँकड़ों से एक यह बात भी प्रकट होती है कि उर्दू का में लिखी जाती है । इस सम्बन्ध में खेद की बात इतनी हिन्दी की अपेक्षा यहाँ ज़्यादा प्रचार है। इन प्रान्तों में ही है कि राष्ट्रभाषा के इस रूप का समर्थन करनेवाली मुसलमानों की आबादी कुल १४ फ्री सदी है । परन्तु यहाँ भारत की एक-मात्र संस्था 'हिन्दुस्तानी एकेडमी' अभी उर्दू के पत्रों और सम्पादकों की संख्या ज्यादा हैं । तक उसको लिखित रूप में नहीं ला सकी। क्या हम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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