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________________ गङ्ग राजवंश। [५९ पृथिवीपति द्वितीय । चोल-पल्लव, युद्ध में भाग लिया था। चोलराज पारान्तक प्रथम इनके मित्र थे। पारान्तकने बाण राज्यका अंत करके उनके देशका शासनाधिकार पृथिवीपतिको प्रदान किया था। साथ ही उनको 'नाणाधिराज' और 'हस्तिमल्ल' विरुदोंसे अलंकृत किया था। उपरांत पृथिवीपति राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीयका सामन्त होगया था। किंतु जब इनके समकालीन मूल गङ्गराज नीतिमार्ग द्वितीयने राष्ट्रकूटोंका अधिकार मानना भस्वीकार किया तो यह भी स्वाधीनताकी घोषणा कर बैठे। परिणमतः वनवासीके राठौर वायसरायने उन पर माक्रमण किया और उन्हें युद्ध में परास्त कर दिया। संभवतः पृथिवीपति पुनः राठौरोंके सामन्त हो गये। ननिय गङ्ग उनके बाद राजा हुये, परन्तु वह एक युद्ध में काम माये और उनके साथ गङ्गोंकी यह शाखा समाप्त होगई। गङ्गवंशकी मूल शाखामें शिवमारके पश्चात् विजयादित्य के पुत्र राजमल्ल राज्याधिकारी हुये । उनके राज्यराजमल्ल । सिंहासनारोहणके समय गणराज्यका विस्तार पहले जितना नहीं रहा था; क्योंकि शिवमारको हरा कर राठौरोंने गनवाड़ीके एक भाग पर अपना अधिकार जमा लिया था। जैसे हीरामल्ल गद्दीपर बैठे कि उनका युद्ध बाण विद्याधरसे छिड़ गया, जिसमें उन्हें गणवाडी ६००० से हाथ धोने पडे । उधर राजमल्लके सामन्तगण भी उनके विरुद्ध होगये और राठौर १-गङ्ग० पृ० ७२.७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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