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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास | मारसिंहका उत्तराधिकारी उसका भाई दिन्दिग हुआ था, जिसका अपर नाम पृथिवीपति था । वह दिन्दिग | जैन धर्मका महान् संरक्षक था । उसने श्रवणबेलगोला में कटवत्र पर्वतपर जैनाचार्य ५८ ] HO अरिष्टनेमिका निर्वाण ( ? समाधि ) अपनी रानी कम्पिला सहित देखा था । उसकी पुत्री कुन्दव्वैका विवाह बाणवंशी राजा विद्याधर विक्रमादित्य जयमेरुके साथ हुआ था । उसने अमोघवर्ष राठौर से त्रास पाये हुये नागदन्त और जोरिंग नामक राजकुमारोंको शरण दी थी। उनकी मानरक्षा के लिये दिन्दिगने कई युद्ध राठौरों से कड़े थे । वैम्बलगुरिके युद्ध में वह जखमी हुये थे; किन्तु वीर दिन्दिगने अपने जखममें से एक हड्डीका टुकड़ा काटकर गङ्गामें प्रवाहित कराया था । उसके समकालीन अन्य मूल शाखा में गङ्ग राजा राजमल्ल सत्यवाक्य और बुटुग थे । उनके साथ वह भी पल्लव - पाण्ड्य - युद्ध में भाग देता रहा था । अपराजित पल्लवसे दिन्दिगने मित्रता कर ली थी और उनके साथ वह श्री पुरम्बियम्के महायुद्ध में वरगुण पांड्य से सन् ८८० ई० में बहादुरी के साथ लड़ा था । उदयेन्दिरम् के लेख से प्रगट है कि वरगुणको परास्त करके अपराजितके नामको दिन्दिग पृथिवीपतिने अमर बना दिया था और अपना जीवन उत्सर्ग करके यह वीर स्वर्गगतिको प्राप्त हुआ थे। 1 दिन्दिगके पश्चात् गङ्गकी इस शाखामे पृथिवीपति द्वितीय नामक राजाने राज्य किया था । उसने १-गह ० पृ० ७०-७१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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