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________________ ६०] संक्षिप्त जैन इतिहास । राजा ममोघवर्षसे भी उन्हें लड़ना पड़ा। राठौर अमोघवर्षकी यह इच्छा थी कि रङ्गवाड़ीको जीतकर वह अपने साम्राज्यमें मिला ले। गणवाडीका जितना भाग राष्ट्रकूट (राठौर) साम्राज्यमें आगया था, उस पर नोलम्ब राजा सिंहपोतके पुत्र-पौत्र राज्य करते थे; जो एक समय स्वयं गङ्गोंके ही करद थे; परन्तु अब राष्ट्रकूट-सत्ताको जिन्होंने स्वीकार कर लिया था। इस पर स्थितिमें राजमल्लको प्राकृत यह चिन्ता हुई कि किस तरह वह अपने खोये हुये प्रांतोंको पुनः प्राप्त कर लें । अपने इस मनोरथको सिद्ध करने के लिये राजमल्ल के लिये यह भावश्यक था कि वह अपने पड़ोसियों और पुराने सामन्तोंसे संधि कर ले । पहले ही उन्होंने नोलम्बाधिराजसे मैत्री स्थापित की, जो उस समय राष्ट्रकूटोंकी ओरसे गणवाडी ६००० पर शासन कर रहे थे। राजमल्लने सिंहपोतकी पोती और नोलम्बाधिराजकी छोटी बहनसे विवाह कर लिया और स्वयं अपनी पुत्री जगव्वे, जो नीतिमार्गकी छोटी बहन थी, नोलम्बाधिराज पोललचोरको व्याह दी। इस विवाह सम्बन्धके उपरान्त नोलम्ब राजा एकबार फिर गङ्गराजाभोंके सामन्त होगये । इधर राजमल्लने राष्ट्रकुट सामन्तोंको अपने में मिला लिया और उधर राष्ट्रकूट सम्राट् अमोघवर्षको स्वयं राजनैतिक अपने घरमें ही भनेक विग्रहोंको शमन परीस्थिति। करनेके लिये मजबूर होना पड़ा-सामंत ही नहीं, उनके सम्बन्धियों और मंत्रियोंने भी उन्हें १-गङ्ग० पृष्ठ ७४-०५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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