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________________ १०६] संक्षिप्त जैन इतिहास । प्रथका रचियता लिखा है। इस ग्रन्थमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थो का अच्छा विवेचन किया गया था। दूसरे उल्लेखनीय भाचार्य श्री कुमारसेन, चिन्तामणि, श्री वर्द्धदेव और महेश्वर थे। श्री वर्द्धदेवका दूसरा नाम उनके जन्मस्थानके नामकी अपेक्षा तुम्बुलाचार्य था। उन्होंने ९६००० श्लोक प्रमाण 'चूड़ामणि' नामक ग्रन्थकी रचना की थी, जिसके कारण वह ' कवि चूड़ामणि' कहलाये थे। महाकवि दण्डिन् ( ७वीं शताब्दि ) ने इनकी प्रशंप्तामें कहा था कि: 'जह्वोः कन्यां जटाग्रेण वभार परमेश्वरः । श्रीबर्द्धदेव सन्धत्से जिहाग्रेण सरस्वतीं ॥ भावार्थ-जिसप्रकार शिवजीने अपनी जटाके अग्रभागसे गंगाको धारण किया, उसी प्रकार श्रीवर्द्धदेवने अपनी जिह्वाके अग्रभागसे साक्षात् सरस्वतीको धारण किया है ! निस्संदेह भाचार्य श्रीवर्द्धदेवकी प्रतिमा और कीर्ति मद्वितीय थी। श्री वर्द्धदेव भाचार्यके समकालीन विद्वान् पूज्यपाद थे, जिनका दीक्षानाम देवनन्दि था और जो देवनंदि पूज्यपाद। संमततः छठी शताब्दिमें माने अस्तित्वसे इस घरातलको पवित्र बना रहे थे । शास्त्रोंमें उनकी प्रसिद्धि एक योगी-रूपमें विशेष है। अपनी महद् बुद्धिके कारण वह जिनेन्द्रबुद्धि कहलाये थे। कनड़ीके 'पूज्यपाद चरित्र' नामक ग्रन्थमें उनका जीवन-वृतांत लिखा हुमा मिलता है। उससे १-गंग• पृ. १९६-१९७। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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