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गङ्ग-राजवंश |
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" महिमासपात्र के सरिगुरोः परं भवति यस्य भक्त्यासीत् । पद्मावती सहाया त्रिलक्षण- कदर्थनं कर्तुम् ।। " भावार्थ-उन पात्रकेसरी गुरुका बड़ा माहात्म्य है जिनकी भक्ति के वश होकर पद्मावतीदेवीने 'त्रिलक्षण कदर्थन ' की कृतिमें उनकी सहायता की थी । बेलूर तालुकेके शिलालेख नं० १७ में भी श्री पात्रकेसरीका लेख है । इसमें समन्तभद्रस्वामी के बाद पत्रिकेसरीका होना लिखा है और उन्हें समन्तभद्र के द्रमिल संघका अग्रेसर सूचित किया है। साथ ही, यह प्रकट किया है कि पात्रकेसरीके बाद क्रमशः वक्रग्रीव, बज्रनन्दी, सुमतिट्टारक, मौर समयदीपक अकलंक नामके प्रधान माचार्य हुये हैं । इन उल्लेख से पात्रकेसरीकी प्राचीनताका पता चलता है। वे अकलंक देवसे बहुत पहले हुये प्रतीत होते हैं । द्राविड़ संघकी स्थापना वि. सं. ५२६ में वज्रनन्दीने की थी । अतः उनसे पहले हुए पात्र केसरीका समय छठी शताब्दी से पहले पांचवीं या चौथी शताब्दि के करीब होना चाहिये । कतिग्य विद्वान् श्री विद्यानन्द स्वमीका ही अपग्नाम पात्रकेसरी समझते हैं, परन्तु यह भूल है । पात्रकेसरी एक भिन्न ही प्रभावशाली चार्य थे।
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गङ्ग राज्य में जैनधर्मका प्रचार करनेवाले आचार्योंमें भट्टारक सुनतिदेव भी उल्लेखनीय थे । श्रवणबेलगोलकी अन्य आचार्य | मल्लिपेण प्रशस्तिमें उनका उल्लेख हुआ है और उन्हें 'सुमतिसप्तक' नामक सुभाषित
१ - अनेकान्त, म ० १ १० ६८-७८ ।
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