SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गङ्ग राजवंश। [१०७ विदित होता है कि 'पूज्यपादका जन्म कर्णाटक देशके कोले नामक ग्राममें रहनेवाले माषमट्ट नामक ब्राह्मण और श्रीदेवी ब्राह्मणीके गृहमें हुमा था। माधवमट्टने अपनी पत्नीके अग्रहसे जैनधर्म स्वीकार किया था। इसलिये बालक पूज्यगद जन्मसे ही जैन वातावरणमें पाले- पोसे भौर शिक्षित-दीक्षित किये गये थे। पूज्यगदकी एक छोटी बहिन थी, जिसका नाम कमलिनी था। वह गुणभट्टको व्याही थी और उसका नागार्जुन नामका पुत्र था। एकदफ़ा पूज्यपादने एक बगीचे में एक सांपके मुंहमें फंसे हुये मेंडकको देखा, जिससे उन्हें वैराग्य होगया और वे दिगम्बर जैन साधु बन गये । उधर गुणभट्टके मरजानेसे नागार्जुन अतिशय दरिद्र होगया। साधुप्रवर पूज्यपादको उस पर दया भागई और उन्होंने उसे पद्मावतीका एक मन्त्र दिया एवं उसे सिद्ध करने की विधि बतला दी। पावतीने नागार्जुनके निष्ट प्रकट होकर उसे सिद्धरसकी वनस्पति बतलादी। इस सिद्ध. रतसे नागार्जुन सोना बनाने कगा। उसने एक जिनालय बनवाया और उसमें भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमा स्थापित की। पूज्यपाद पामयोगी थे। वह गगनगामी लेप लगाकर विदेह क्षेत्रको जाया करते थे। उन्होंने मुनि अवस्थामें बहुत समय तक योगाभ्यास किया और एक देवके विमान में बैठकर भनेक तीर्थोकी यात्रा की। तीर्थयात्रा करते हुये मार्गमें एक जगह उनकी दृष्टि नष्ट होगई थी सो उन्होंने एक शान्त्याष्टक रचकर ज्योंकी त्यों करली । इसके बाद उन्होंने अपने ग्राममें भाकर समाधिपूर्वक मरण किया। उन्होंने 'जैनेन्द्र व्याकरण 'महत्प्रतिष्ठालक्षण और वैद्यक-ज्योतिषके कई ग्रन्थ रचकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy