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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर | [ ६२ पड़गाहकर भक्तिपूर्वक आहारदान दिया था' । राजा और नगरका एक ही नाम, गणराज्यका द्योतक है और यह ऊपर कहा ही जाचुका है कि यह कुलपुर नाथवंशी क्षत्रियोंकी विशेष वस्ती 'कोलग' ही थी और कुलनृप वहांके क्षत्रियोंके प्रमुख नेता थे । भगवानका पारणा उन्हींके यहां हुआ था | कुलपुरसे भगवान दशरथपुरको गये थे । वहां भी इसी कुलनग्ने जाकर भगवानको दुष और चांवलका आहार दिया था । इसप्रकार परम पात्रको आहारदान देकर इस राजाने विशिष्ट पुण्य संचय किया था । उसके यहां देवोंने रत्नवृष्टि आदि पंचश्चर्य किये थे । इसके उपरान्त भगवान महावीर वनको वापस चले गये और ध्यानमग्न होगये थे । फिर वहांसे वे भवनामक रुद्रका उपसर्ग 1 अन्यत्र विहार कर गये थे । कितने ही स्थानोनें विचरते हुये वे उज्जयनी पहुंचे थे । अभी वे अलज्ञ थे और इस कारण मौनसे रहने हुये, केवल आत्मस्वरूपमें लीन रहते थे । उज्जयनी पहुंचकर वह ' अतिमुक्तक' नामक स्मशानभूमिमें रात्रि के समय प्रतिमायोग धारण करके, ध्यानलीन खड़े थे । उस समय भव नामक रुद्रने उनपर अनेक प्रकारके उपसर्ग किये थे; किन्तु वह उन 'विभव' अर्थात् संसार रहितको जीव न सका था । मन्तमें उसने उन मिननाथको नमस्कार किया और उनका नाम अनिवीर रक्खा था | I ६११-६१२ / २-मम० १० १ - उ पु० ६१२-६१३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ९८ । ३- पु० www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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