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________________ ~ ~ ~ ~ ~ संक्षिप्त जैन इतिहास । कर पूर्ण स्वतंत्र होजाता है । जैनोंके निकट विशेष आवश्यक जो जल है, सो इम भेषमें कपड़ोंके न होने के कारण उसकी भी जरूरत नहीं पड़ती। ___ वस्तुतः हमारी बुगई भलाईकी जानकारी ही हमारे मुक्त होनेमें बाधक है । मुक्तिलाम करनेके लिए हमें यह भूल जाना चाहिये कि हम नग्न हैं। जैन साधु इस वातको भूल गये हैं। इसीलिये उनको कपड़ोंकी आवश्यक्ता नहीं है। वह परमोत्कृष्ट और उपादेय दशाको पहुंच चुके हैं । इस दिगम्बर भेषको केवल जैनोंने ही नहीं प्रत्युत हिन्दुओं ईसाइयों और मुसलमानोंने भी साधुपनका एक चिन्ह माना है। सारांशतः यह प्रगट है कि अगवान महावीरने गृह त्याग करके इसी दिगंबर भेषको धारण किया था । श्वेताम्बर जैन आचार्य अन्ततः कहते हैं कि “ उन ( भगवान महावीर ) के तीन नाम इसप्रकार ज्ञात हैं कि उनके माता-पिताने उनका नाम वर्द्धमान रक्खा था, क्योंकि वे रागद्वेषसे रहित थे; वे 'श्रमण' इसलिये कहे जाते थे कि उन्होंने भयानक उपसर्ग और कठिन कष्ट सहन किये थे, उत्तम नग्न अवस्थाका अभ्यास किया था और सांसारिक दुःखोंको सहन किया था; और पूज्यनीय 'श्रमण महावीर', वे देवों द्वारा कहे गये थे।" दीक्षा ग्रहण कर लेनेके उपरान्त भगवान महावीरने ढाई भगवानका प्रथम दिनका उपवास किया और उसके पूर्ण होनेपर पारणा। जब वह मुनि अवस्थामें सर्व प्रथम माहार ग्रहण करनेके लिये निकले तो कुलनगरके कुलनृपने उनको १-भमबु० पृ. ५९-६० । २-Js. T. P. 193. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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