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________________ .२३८] संक्षिप्त जैन इतिहास । आधुनिक विद्वान भी मान्य ठहराते हैं । भद्रबाहु श्रुतकेवलीसे चंद्रगुप्तने दीक्षा ग्रहण की थी और उनका दीक्षित नाम मुनि प्रभाचंद्र था। इन्होंने अपने गुरु भद्रबाहुके साथ दक्षिणको गमन किया था और श्रवणबेलगोलमें इनने समाधिपूर्वक स्वर्ग लाभ किया था। इस स्पष्ट और जोरदार मान्यताके समक्ष चंद्रगुप्तको जैन न मानकर शैव मानना, सत्यका गला घोंटना है । हिन्दु शास्त्रोंमें अवश्य उनके जैन साधु होने का प्रगट उल्लेख नहीं है; परन्तु हिंदू शास्त्र उन्हें एक शूद्राजात लिखनेका दुस्साहस करते हैं; वह किस बातका द्योतक है ? यदि चंद्रगुप्त जैन नहीं थे, तो उन्होंने एक क्षत्री रानाको अकारण वर्ण-शंकर क्यों लिखा ? इस वर्णनमें सांप्रदायिक द्वेष साफ टपक रहा है। जैसे कि विद्वान् मानते हैं और इस तरह भी चंद्रगुप्त का जैन होना प्रगट है। कोई विद्वान् उनके नृशंस दंड विधान आदिपर आपत्ति करते हैं और यह क्रिया एक जन सम्र के लिये उचित नहीं समझते । किन्तु उनका दण्डविधान कठिन होते हुये भी अनीति पूर्ण और अनाआधीन एक हजार राजा हों। चन्द्रगुत मौर्य ऐसे ही प्रतापी राजा थे। शिलालेखीय साक्षी ई० सन्के प्रारम्भिक कालकी है । (देखो. श्रवण० पृ० २५-४० व जैसिभा० भा० )। १-अहिइ० पृ० १५४; मैसूर एण्ड कुर्ग-राइस, भा० १; हिवि० भा० ७ पृ० १५६; इरिइ०-चन्द्रगुप्त; केहिइ० भा० १ पृ. ४८४ और माइजै० पृ० २०-२५, हिआइ० पृ. ५९ जैनीजम और दी अझै फेथ आव अशोक पृ० २३ व जविओसो भा० ३ ०। २-जैसिभा० भा० १ कि० २-३-४ व कैहिइ० भा०१ पृ० ४८५। ३-राइ० भा० १ पृ० ६१ । ४-लाभाह• पृ० १५३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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