SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मौर्य साम्राज्य। [९३७. मेगास्थनीनके कथन एवं 'मुद्राराक्ष नाटकके वर्णनसे होता है।' मौर्याख्यदेशमें जैनधर्मका प्रचार विशेष था। एक मौर्यपुत्र स्वयं भगवान महावीरजीके गणधर थे । और नन्दवंश भी जैनधर्म भक्त था, यह प्रगट है । इस दशामें चन्द्रगुप्तका जैन-एक श्रावक होना कुछ भी अत्योक्ति नहीं रखता। जैन शास्त्र उसे एक मादर्श और धर्मात्मा राजा प्रगट करते हैं। किन्तु उनके जैन न होने में सबसे बड़ी आपत्ति यह की जाती है कि वह शिकार खेलते थे। पर चंद्र. गुप्तके शिकार खेलने संबन्धमें भो प्रमाण दिया जाता है, वह यूनानी लेखकोंका भ्रान्त वर्णन है । क्योंकि युनानियोंने नहांपर शिकार खेलनेका वर्णन दिया है। वहां चन्द्रगुप्तका स्पष्ट नामोल्लेख नहीं है। वह कथन साधारण रूपमें है । और इधर जैनशास्त्रोंसे यह प्रगट ही है कि चंद्रगुप्तने कभी शिकार आदि कोई संकल्पी हिंसाकर्म नहीं किया था। ___ अतः मालुम यह पड़ता है कि चन्द्रगुप्त जन्मसे अविरत सम्यग्दृष्टी जैनी थे; किन्तु फिर जैन मुनियों के उपदेशको पाकर उन्होंने महिंसा मादि व्रतोंको ग्रहण करके अपना शेष जीवन धर्ममय बना लिया था। यदि उन्होंने पहिलेसे श्रावकके व्रोंका मम्बास न किया होता, तो यह सम्भव नहीं था कि वह एकदम जैन मुनि होजाते। उनका नैन मुनि होना प्राचीनतम साक्षीसे सिद्ध है। और उसे १-जराएको• भा० ९ पृ. १७६ । २-वीर वर्ष ५ पृ० ३९० । ३-ईसाकी पहिली या दूसरी शताब्दिके प्रन्य तिलोयपणति' (गा. ७)में चन्द्रगुप्त को जैन मुनि ोना लिखा है। और उसे "मुकुटधर" राजा लिखा है। 'मुकुटधर' से भाव सम्भवतः उस राजासे है जिसके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy