SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मौर्य-साम्राज्य। [२३९ चारको बढ़ानेवाला नहीं था। उसका उद्देश्य जनसाधारणमें सुनी. तिका प्रचार करना था। और इस उद्देश्यमें वह सफल हुआ था; जैसे कि हम देख चुके हैं । तथापि उसमें जब पशुओं और वृक्षों तककी रक्षाका पूर्ण घ्यान था, तब उसे जैनधर्मके विरुद्ध खयाल करना मूल भरा है । चन्द्रगुप्त अवश्य ही एक बड़े नीतिज्ञ और उदारमना जैन सम्राट थे । यही कारण है कि प्रत्येक धर्मके शास्त्रोंमें उनका उल्लेख हुमा मिलता है । जैन शास्त्रोंमें उनका विशेष वर्णन है और वह उनके अंतिम जीवनका एक यथार्थ वर्णन करते हैं; वान अन्य किसी जैनेतर श्रोतसे यह पता ही नहीं चलता है कि उनका राज्य किस प्रकार पूर्ण हुआ था । जैन शास्त्र बतलाते हैं कि वह अपने पुत्रको राज्य देकर जैन मुनि होगये थे और यह कार्य उनके समान एक धर्मात्मा रानाके लिये सर्वथा उपयुक्त था । अतएव चंद्रगुप्त का न होना निःसंदेह ठीक है । मि० स्मिथ कहते हैं कि "जैनियोंने सदैव उक्त मौर्य सम्राटको विम्बसार (प्रेणिक) के सदृश जैन धर्मावलंबी माना है और उनके इस विश्वापको झूठ कहनेके लिये कोई उपयुक्त कारण नहीं है ।" कोई विद्वान कहते हैं कि यदि चन्द्रगुप्त जैन धर्मानुयायी थे, तो वह एक बाह्मणको अपना मंत्री नहीं रख चाणषय । ' सक्ते थे। किंतु इस मापत्तिमें कुछ तथ्य नहीं है, क्योंकि कई एक जैन राजाओंके मंत्री वंश परम्परा रीतिपर मयवा स्वाधीन रूपमें ब्राह्मण थे । और फिर जैन शास्त्रोका कहना १-प्रवण. पृ. ३७ व आहि. पृ० ७५-७६ । २-आहिइ० पृ. ०५ व जैशिमं भू. पृ० ६९। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy