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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [१२१ भाव यह है कि ऋषभदेव और महावीर भगवानने सामायिकादि पांच प्रकारके चारित्रका प्रतिपादन किया है, जिसमें छेदोपस्थापनाकी यहां प्रधानता है । शेष बाईस तीर्थकरोंने केवल ही केवल सामायिक चारित्रका प्रतिपादन किया है। इस शासन भेदका कारण आचायने बतलाया है कि "पांच महाव्रतों (छेदोपस्थापना) का कथन इम बनहसे किया गया है कि इनके द्वारा सामायिकका दूसरों को उपदेश देना, स्वयं अनुष्ठान करना, पृथक् २ रूपसे भावनामें लाना सुगम होनाता है । आदि तीर्थमें शिष्य मुश्किलसे शुद्ध किये जाते हैं; क्योंकि वे अतिशय सरल स्वभाव होते हैं। और अंतिम तीर्थमें शिष्य नन कठिनतासे निर्वाह करते हैं; क्योंकि वे अतिशय वक स्वभाव होते हैं । साथ ही इन दोनों समयों के शिष्य स्पष्ट रूपसे योग्य अयोग्यको नहीं जानते हैं। इसलिये आदि
और अन्तके तीर्थों में इस छेदोपस्थापनाके उपदेशकी जरूरत पदा हुई है।"
इसी प्रकार ऋषभ और महावीरजीके तीर्थ के लोगों के लिये अपराधके होने और न होने की अपेक्षा न करके प्रतिक्रमण करना मनिवार्य होता; किन्तु मध्यके चाईम तीर्थकरों का धर्म अपराधके होने पर ही प्रतिक्रमणका विधान करता है । इस त' नीथरोंका यह झा 'भेद द्रव्य, क्षेत्र, कर, भावके अनुपा है और मूलभावमें परम्पर कुछ भी विरोव नही खता । सब हो या महान् व्यक्तित्व और उनका धर्म प्रायः एक समान होता है।
१-मूला० ७-३२ । २-मूला. 1.4-१२९ विशेषके लिये देखो बेन हितैषी मा. १२ अंक ७.८ ।
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