SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२] संक्षिप्त जैन इतिहास । तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ भगवान महावीरजीसे श्रीज्ञातपत्र महावीर ढाई सौ वर्ष पहिले हुये थे । उनका वैय. और क्तिक और पारस्परिक सम्बंध उपरोक्त भगवान पार्श्वनाथ । उल्लेखई अतिरिक्त और कुछ भी अधिक दृष्टि नहीं पड़ता । किंतु श्वेतांबर शास्त्रों में उनके और महावीरनीके धर्ममें कुछ विशेष अन्तर बतलाया है । श्वेतांबर कहते हैं कि पार्श्वनाथनीने केवल चार व्रतों का ही निरूपण किया था और उनके तीर्थके साधु सवस्त्र रहते थे। भगवान महावीरने उन चार व्रतों में गर्भित शीलव्रतको प्रथकरूप देकर पांच व्रतोंका उपदेश दिया और उन्होंने साधु जीवनको कठिन तपस्यासे परिपूर्ण बनाने के लिये नग्नताका विधान किया था। श्वेतांबरोंका यह कथन उनके विशेष प्रमाणिक और मुल आचारांगादि ग्रन्थों में नहीं है । और यह भन्यथा भी बाधित है। बौद्ध ग्रन्थों में अवश्य भगवान महावीरको 'चातुर्याम संवर' से वेष्टित बतलाया है किन्तु वह श्वेतांबरोंके चार व्रतोंके समान नहीं है। वह ठीक वैसी ही चार क्रियायें हैं जैसी कि जैन साधुओंके लिये दि० जैन ग्रन्थों में मिलती हैं। किन्तु हमारा अनुमान है कि उपरांत ईसवीकी छठी शताव्दिमें जब श्वेतांबर ग्रन्थों का संकलन हुआ था, तब बौद्ध ग्रन्थों में जैनोंके लिये 'चातुर्याम संवर' नियमका प्रयोग देखकर श्वेतांबरोंने उसका सम्बंध पार्श्वनाथनीसे बैठा दिया; क्योंकि यह तो विदित ही है कि श्वेतांबर भागम १-उसू० पृ० १६९-१७५ । २-दीति० भा० १ पृ. ५७-५८ । ३-भयबु. पृ. २२२-२२७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy