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________________ ANRAINWwwwwraNNOUNDAUNandaniMunnao ५४] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग। हुए। इनके समयमें मातापिता अपनी संतानों के साथ क्रीड़ा करने लगे, इसलिये इन्होंने संतानपालन आदिकी विधि बतलाई। ____ ग्यारहवें कुलकर चंद्राभ थे; जिनके समयमें प्रजा संतानके साथ पहिलेसे अधिक दिनोंतक रहकर मरण करती थी। इनके कुछ समय बाद बारहवें कुलकर मरुदेव हुए | इनके पहिले पुत्र पुत्रीका जोड़ा पैदा होता था, परन्तु इसके जोड़ा न पैदा होकर तेरहवां कुलकर एक ही प्रसेनजित नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, सो इससे यह जाना कि अबसे युगलिया पैदा न होकर एक ही पुत्र या पुत्री उत्पन्न हुआ करेंगे । राजा मरुदेवने पुत्र प्रसेनजितका किसी उत्तम कुलकी कन्यासे विवाह कर दिया। राजा मरुदेवके आधीन उस समयकी सब व्यवस्था थी। ' इन्होंने जलमार्गमें गमन करनेके लिये छोटी बड़ी नाव चलानेका उपाय बताया। पहाड़ों पर चढ़नेके लिये सीढ़ियां बनाना बताया । इन्हींके समयमें छोटी, बड़ी कई नदियां और उपसमुद्र उत्पन्न हुए व मेघ भी न्यूनाधिकरूपसे बरसने लगे।' फिर कुछ समय बाद मरुदेवके स्वर्ग प्राप्त करनेपर प्रसेनजित तेरहवें कुलकर हुए । ' इनके समयमें संतान जरायुसे ढकी उत्पन्न होने लगी । इन्होंने उसके फाड़नेका उपाय बतलाया। इन सर्व व १४ वें कुलकर नाभिरायमेंसे किसीको अवधिज्ञान होता था और किसीको जातिस्मरण होता था। प्रजाके जीवनका उपाय जाननेके कारण ये १-परिमित देश, क्षेत्र, काल और भाव सम्बन्धी तीनों कालका जिससे ज्ञान हो वह अवधिज्ञान है। २-जाति स्मरणसे भूतकालका स्मरण होता है। ... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035242
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1943
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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