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द्वितीय परिच्छेद।
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इनके भी असंख्यात करोड़ों वर्ष बाद सीमंकर नामके पांचवें कुलकर हुए । इनके कालमें कल्पवृक्षोंकी संख्या कम होगई थी और वे फल भी थोड़ा देने लगे थे इसलिए मनुष्य आपसमें झगड़ा करते थे। इन्होंने उन झगड़ोंको दूर किया । हरएककी सीमा बांध दी
और बटवारा कर दिया, जिससे अपनी २ हद्दके अनुसार लोग उन कल्पवृक्षोंसे लाभ लेने लगे। सीमंकर पल्यका लाखवां भाग जीकर आयुके अन्तमें स्वर्ग गया।
इनके स्वर्गवास होनेपर इनका पुत्र सीमंधर छट्ठा कुलकर हुआ। ‘सीमंधर वास्तवमें सीमंकर ( पिताकी मर्यादा रखनेवाला ) था । और वह भी पल्यका दश लाखवांभाग आयु व्यतीत कर स्वर्गलोक गया।'x
सीमंधरके पश्चात् सातवां कुलकर विपुलवाहन वा विमलवाहन हुआ। इन्होंने हाथी, घोड़ा, बैल आदि सवारी करनेवाले पशुओंपर सवारी करनेकी विधि बतलाई ।
__ इनके असंख्यात करोड़ वर्षोंके बाद चक्षुष्मान नामक आठवें कुलकर हुए। इनके समयके पूर्व संतान उत्पन्न होते ही उनके माता पिता मर जाते थे, परन्तु इनके समयसे संतान होनेके क्षणभर बाद मरने लगे। इन्होंने लोगोंको संतान होनेका कारण बतलाया ।
इनके भी असंख्यात करोड़ वर्षोंके बाद नौवें कुलकर यशस्वान हुए । इन्होंने मनुष्योंको अपनी संतानोंका नाम धरना सिखाया। इनके समयमें मातापिता कुछ काल तक संतानके साथ रहकर मरते थे।
इनके उतने ही समय बाद अभिचन्द्र नामके दशवें कुलकर ___ x श्री हरिवंशपुराण सर्ग ७ श्लोक १५-५५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com