________________
प्रस्तावना
यही हाल अणुगद सिद्धान्त (Atomic Theory) का है। ब्राह्मणों के प्राचीन ग्रंथों जैसे उपनिषधादिमें अणुसिद्धान्तका उल्लेख नहीं है । वेदान्तसूत्रमें तो इस सिद्धान्तका इसीलिये खंडन भी किया गया है। सांख्य और योगदर्शनोंमें भी इसके दर्शन नहीं होते। वैशेषिक और न्यायदर्शनमें यह सिद्धान्त स्वीकृत मिलता है, परन्तु यह दोनों दर्शन अर्वाचीन और पौरुषेय हैं । जैनों और आजीविकोंको यह सिद्धान्त प्रारम्भसे मान्य रहा है। विद्व न् पुरुष जैनोंको ही इस विषयमें प्रमुख स्थान देते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने सिद्धान्तको पुद्गल संबंधी अतीव प्राचीन मतों (most primitive) के अनुसार निर्दिष्ट किया है। ये सिद्धान्त स्वतः जैनधर्मका महत्व स्थापित करते हैं। इसलिए इसप्रकार भी जैनधर्मकी प्राचीनता सिद्ध होती है और हमको कहना होगा कि जैनधर्म और जैन ,जाति सर्व प्राचीन होनेका दावा कर सकते हैं। एवं जैन दृष्टिसे इतिहासका विकाश एक अज्ञात समयसे पारम्भ होता है।
क्या जैनी भारतके मूल निवासी हैं ? भाधुनिक विद्वानोंका मत है कि पहले भारतवर्षमें अनार्य लोग बसते थे एवं आर्य भारतवर्षके मूल निवासी नहीं हैं। वे भारतवर्ष में
-जैकोबी, ईसाइलोपेडिया ऑव रिलीजन एन्ड इथिक्स भाग २ र १९९-२००. २-जब जैन धर्मका अस्तित्व हिन्दुओंके वेदोंमें भी प्राचीन प्रमाणित है तब उसे बोवधर्मसे निकला हुआ. समझना नितान्त मिथ्या है। इस विषयका विशेष विवरण वर्तमान लेखकको “भगवान् महापौर" मामक पुस्तक में देखना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com