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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग |
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उत्तर पश्चिमी दरोंसे ऐतिहासिक कालके बहुत पहिले प्रविष्ट हुए थे । कहा जाता है कि यूरोपकी प्रायः सभी जातियां और एशिया में भार तीय तथा ईरानी ये सब इसी वंशकी हैं। यूरोपीय माता पितासे उत्पन्न अमेरिकन भी इसी जाति से हैं ।
यद्यपि 'वास्तव में प्राचीन आर्योंकी मूल जन्मभूमि कहां थी, वे लोग कब वहांसे चले और किस किस देशमें कब कब जाकर बसे ' 'इस विषयमें अन्वेषकका विभिन्न मत है, परन्तु विशेष प्रमाणोंके ' होते हुए यह युक्तिसंगत प्रतीत होता है कि आयका मूल स्थान - भारतवर्ष ही था, जैसा कि हिंदी विश्वकोषके भाग २ पृष्ठ ६८९ पर प्रमाणित किया गया है और कहा गया है कि "ऋक्संहिता के अनुप्रत्नस्योकसो हुवे " ( १।३० | १९ ) प्रमाणपर यूरोपीय पुरातत्वविद् सारस्वत आर्योंके आदि पुरुषोंका पूर्ववास एशिया खण्ड के मध्यभाग - स्थित बेलुर्ता और सुशतागकी पश्चिम पार्श्वगत उपत्यका भूमि बताते हैं । किन्तु वस्तुतः पहिले आर्यावास सप्तसिंधु प्रदेश रहा ।.... गङ्गा, यमुना, सरस्वती, शुतुद्री ( शतद्रु ), परुष्णी ( हरावती ). असिन्की ( चन्द्रभागा ), एवं वितस्ता, इन्होंमें इरावती. चन्द्रभागा और वितस्ता इन तीनोंके संमिलनसे सम्भूत मरुद्धधा, शतद्रुके पश्चिम पार्श्व के संगत प्राचीनतम आर्जीकीया ( उरुजिए वा विपाट् जो इस समय विपाशा नाम से प्रख्यात है) और तक्षशिला नामक प्रदेशसे निम्नगामी सिंन्धु'संगत सुषोभा सात नदी जिस भूभागमें वहती, उसकी संज्ञा सप्तनद या सप्तसिंधु है .... वर्णित सप्तनद प्रदेश सिंधुके पूर्व पार पड़ता है, । सिंधु पश्चिम पार भी अपर सप्तनद्र प्रदेश विद्यमान है । आजकल यह
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