________________
१२]
संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग ।
जैन सिद्धांतका प्रमाव प्रमाणित किया है । इसलिये प्रगट है कि संसारकी समस्त जातियोंने जैन तत्वज्ञानसे बहुत कुछ सीखा था। उनके तत्त्वोंका जैनधर्मसे सादृश्य होना उक्त व्याख्यामें अतिशयोकि प्रमाणित नहीं करता। ___साथ ही जैनधर्मके कतिपय सिद्धांत भी उसकी प्राचीनता प्रगट करते हैं, जैसे-(१) जैनधर्ममें वनस्पति, पृथ्वी, जल, अग्नि आदि पदार्थों में जीवित शक्तिका होना बतलाया गया है । Enthology विद्याका मत इस सिद्धांतके विषयमें है कि वह सर्व प्राचीन मनुष्योंका सिद्धांत है। (२) जैनसिद्धांतमें तत्त्वों या द्रव्योंका वर्णन करते समय गुणों का पृथक् विवेचन नहीं किया गया अर्थात् गुणोंको स्वयं एक तत्त्व वा द्रव्य नहीं माना है। इससे प्रगट है कि जैनधर्मकी उत्पत्ति वैशेषिक दर्शनसे बहुत प्राचीन है, जिनमें पदार्थों और उनके गुणों में मेद किया है। (३) और जैनधर्ममें आदर्श पूजा स्वीकृत है। जैनी उन महान् पुरुषों की पूजा करते हैं जो सर्वोत्कृष्ट, सर्वज्ञ, सर्वहितैषी थे। इस प्रकारकी पूजा प्राचीन मनुष्यों में ही प्रचलित थी। (See Carlyle in Heroes & Hero worship.) तिसपर मि० ई. टामस साहब अपनी Early Faith of Ashoka नामकी पुस्तकमें लिखते हैं कि-"जो धर्म अत्यन्त सरल होगा वह उससे अधिक जटिल धर्मसे प्राचीन समझा जायगा ।" फिर मेजर जनरल उरलाम साहब जैनधर्मका पूर्ण अध्ययन करके कहते हैं कि “बैन"धर्म" से साल पूजामें, व्यवहारमें और सिद्धांतमें और कौनसा धर्म होसकता है:
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com