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श्रीवीतरागाय नमः।
संक्षिप्त जैन इतिहास
प्रथम भाग।
प्रस्तावना (द्वितीयावृत्तिकी संशोधित) जैनधर्मकी ऐतिहासिक प्राचीनता। जैनधर्म अथवा जैन जातिकी ऐतिहासिक प्राचीनताके विषयमें यदि कोई निश्चयात्मक बात कही जा सकती है तो वह यह होगी कि जितनी ही ऐतिहासिकता भारतवर्षके ऐतिहासिक कालकी सिद्ध होती बायगी उतनी ही जैनधर्मकी प्राचीनता प्रगट होगी, कारण कि भारतके प्राचीनकालमें जैनधर्मके अस्तित्वकी प्रधानता रही है। वर्तमानमें जिसप्रकार मारतवर्षका ऐतिहासिक काल ईसासे पूर्व ६०-७०० वर्षसे ही नहीं बल्कि श्रीकृष्णजीके समय अर्थत् ई - पूर्व ३-४ हजार वर्षोंसे प्रारम्भ होता है उसी प्रकार जैन इतिहासकी कालगणना समझना चाहिए। यपि एक दृष्टिसे जैनधर्मकी ऐतिहासिक प्रमाणता ईसासे पूर्व लगभग ५-६ हजार वर्ष तक बढ़ जाती है क्योंकि आधुनिक खोजने सिधुकी उपत्ययकामें प्राप्त पुरातत्वमें इस प्रकारकी साक्षी उपलब्ध की है। वहांकी ना मूर्तियां नैनोंके समान हैं और वहाँकी एक मुद्रा पर प्रो० प्राणनामले चिनेन्द्र' शब्दहा है। अतः जैनधर्मकी प्राचीनता भारतके
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