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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग ।
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अनन्त अतीत में विलीन मिलती है। इसीलिए आधुनिक दृष्टिसे एक विशेष विश्वसनीय जैन इतिहास बहुत पहले नहीं तो ईसासे पूर्व की ९ वीं शताब्दिसे प्रारम्भ हुआ मानना उपयुक्त है ।
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उधर यह स्पष्ट है कि भगवान पार्श्वनाथके पूर्वगामी तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथजी अर्जुनके मित्र और गीताके श्रीकृष्णके समकालीन थे । जैन गणना के अनुसार वह भगवान पार्श्वनाथसे ८४००० वर्ष पहिले हुए कहे जाते हैं। इनका उल्लेख यजुर्वेद अध्याय ९ मंत्र २५ में है । इनसे भी पूर्वके तीर्थङ्करीका वर्णन वेदों एवं अन्य हिन्दू पुराणों में आया है, जैसे भागवत पुराण में जैनधर्मके इस युगकालीन संस्थापक श्री ऋषभनाथजीको आठवां अवतार माना है और १३ वें अवतार वामनका भी उल्लेख वेदोंमें है । इसलिये इन सर्व बार्तोसे यह प्रमाणित होता है कि जैनधर्मका अस्तित्व वेदोंके निर्मित होनेके पहिलेसे है । और पाश्चात्य विद्वानों में सर्व अन्तिम सम्मति "इन्सायक्लोपेडिया ऑफ रिली-: जन एण्ड ईथिक्स" के भाग ७ पृष्ठ ४७२ की से इस विषय की पुष्टि होती है, क्योंकि वहां पर बतलाया गया है कि कर्मसिद्धान्त में व्यवहृत आश्रव और संचरका यथार्थ शब्दार्थ जैनधर्मसे इन शब्दोंका प्रगट है. एवं अन्य किसी धर्ममें वह अपने असली शब्दार्थ में व्यवहृत नहीं हुए हैं।
इसके अतिरिक्त मेजर जेनरल जे० जी० आर० फरलॉन एफ. आर. एस. ई., एफ. आर. ए. एस., एम. ए. डी. आदि आदिने अपने १७ वर्षके लगातार अन्वेषणके पश्चात् प्रगट किया है कि " ईसासे पहिले २५०० से ८०० वर्षतक, बल्कि अज्ञात समयसे, उत्तरीय, पश्चिमी और उत्तरी- मध्य भारत तूरानियोंके " जिनको खासानीके
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