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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग ।
उनके शस्त्रोंमें धनुषवाणकी मुख्यता है, पर तलवार, गदा, मुम्दर, बर्जा आदि भी उस समय प्रचलित थे । उनका रणका मुख्य वाहन रथ ही था। वे मल्लयुद्ध और मुक्कोंके युद्ध (Boxing) से भी परिचित थे । प्रायः इन अहिंसक युद्धों द्वारा ही जय पराजयका निर्णय किया जाता था। उस समयका जातिभेद भी अक्से बिल्कुल विभिन्न था। प्रारम्भमें केवल तीन वर्ण ही थे और उनमें परम्पर वर्णान्तर्गत विवाह सम्बन्ध होता था !x स्वयंवरकी रीति भी प्रारम्भ हो गई थी और बहु विवाह भी प्रचलित था। पश्चात् संसारसे उदासीन आत्म-मुमुक्ष मनुष्योंका एक अन्य वर्ण ब्राह्मण नामसे स्थापित हुआ था, परन्तु जातिका नेतृत्व क्षत्री वर्ण ही करता था। उस समयके मनुष्य बड़े, 'धर्मनिष्ठ होते थे।
अपने षडावश्यक कर्म नित्यप्रनि किया करते थे । गोत्रके बड़े लोग ही मुखिया होते थे। और वही अपनी गोत्रज संतानको धर्मकर्म - कुशल बनाते थे। जैसे कि भगवान ऋषभनाथने अपनी पुत्री व पुत्रोंको म्वयं लौकिक एवं पारलौकिक विद्यामें पारंगत किया था। जाति पांतिका यह उदार क्रम भगवान महावीरके कुछ पश्चात् तक ऐसा ही रहा, परन्तु उपातिमें वह जटिल होता गया। उस समय के धर्मालु आयोंको शारीरिक पशुबलपर घमण्ड नहीं था। वे अपने आत्मबलपर ही विश्वास रखते थे और अपने स्त्रओंको माते और अपमानित नहीं करते थे बल्कि उनको प्राणदान देकर अपना हितेषी बना लेते थे। उस समय अभव्य-अनार्य भी अवश्य थे और वह धर्नन्त
xदेखा विवाहक्षेत्र प्रकाश ।
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