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समरसिंह।
जिसके ऐसे गुणी पुत्र उत्पन्न हुए हों ! इनकी धार्मिकवृति के प्रताप से कलियुगके सारे पाप काँपने लगे । तीनों पुत्र मानों तीनों लोकों के सारभूत थे । जेष्ठ पुत्र का नाम सहज, ममले का साहण और सब से छोटे का नाम समरसिंह था। तीनों पुत्ररत्न साहसी, सुन्दर, शूरवीर, सहनशील, और कुल के शृङ्गार थे । इनमें से तृतीय, जो हमारे चरितनायक हैं, तो विशेष चमत्कारी थे । इनकी बुद्धि, वैभव और भाग्य, अभ्युदय की पराकाष्टा तक पहुँचा हुआ था । इस लोहे की लेखनी का परम सौभाग्य और अभिमान है कि जिसके द्वारा ऐसे दानवीर नररत्नों का चरित अंकित कर आज हम हिन्दी संसार के समक्ष रखने को समर्थ हुए हैं। पाठक प्रवर ! तनिक धीरज धरिये इनके रम्यगुणों का विशद वर्णन, ऐतिहासिक प्रमाणों सहित आगेके अध्यायों में, विस्तारपूर्वक किया जायगा।
शाह देशल के लघु बान्धव का नाम लावण्यसिंह था, जिनकी गृहिणी का नाम लक्ष्मी था । लावण्यसिंह सचमुच लक्ष्मीपति की नाई सुख प्राप्त कर रहे थे । इनके जो दो पुत्र थे उनके नाम क्रमसे ये थे-सामन्त और सोगण । दोनों लवकुश की तरह गंभीर, वीर और धीर थे । उच्च गुणोंने तो मानो इन युगल भ्राताओं के शरीर में ही निवास कर लिया हो ऐसा भान होता था । उधर जब लावण्यसिंह का भी सहसा देहान्त हो गया तो देशलशाह का गार्हस्थ्य भार और भी बढ़ गया। देशलशाह दोनों भाइयों के वियोग से दो पंख कटे पक्षी की तरह
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