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________________ समरसिंह । मरुभूमि का नखलिस्तानरूप, धनधान्य के भरे भाण्डारों सहित विशाल आबादी वाला, व्यापार का केन्द्र और अपनी रमणीय शोभा और प्राकृतिक दृश्यों से स्वर्ग की प्रतिस्पर्द्धा करने वाला कमनीय नगर, उपकेशपुर के नाम से विख्यात था। नगर के चारों और बाग बगीचों का मनोहर दृश्य दर्शकों को सहज ही में अपनी ओर आकर्षित कर लेता था । जनता के आवश्यक जल देने के श्रोत अनेक जलाशय नगर के चारों ओर विद्यमान थे जिन में स्वच्छ और मीठा जल भरा हुआ था । यह नगर प्राचीन ऐतिहासिक नगर है । इसकी प्राचीनता के प्रमाणिक उल्लेख १ विक्रम की आठवी शताब्दी में भीनमाल के राजा भाणने उपकेशपुर के रत्नाशाह की कन्या से विवाह किया था। (जैन गोत्र संग्रह पं० ही० हं० जामनगरवाय) २ विक्रम की नौवीं शताब्दी में उपकेशपुर में प्रसिद्ध प्रतिहार वत्सराज का राज था (दि० हरिवंश पुराण) ३ कोटाराज्य के अटास्याम में एक जैनमूर्तिपर वि० सं० ५०८ के शिलालेख में ( उपकेश वंशी ) मैशाशाह का नाम है। इस से उपकेशपुर की प्राचीनता सिद्ध होती है । ( राजपूताना की सोधखोज से ) ४ समेतमेतत्प्रथितं पृथित्वमुपकेश नामास्तिपुरं ( वि. सं. १०१३ प्रोशियों मन्दिर के शिलालेख से) ५ उपकेश च कोरंटे तुल्यं श्रीवीर बिम्बयों प्रतिष्टा निर्मिता शक्त्या श्रीरत्नप्रभसूरिमिः। [श्री उपकेशगच्छ चरित्र ( अमुद्रित)] ६ मास्ति स्वस्ति च व्य (कव)द् भूमेर्मरु देशस्य भूषणम् । निसर्ग सर्ग सुभगगुपकेश पुरं वरम् । (नामिनदनोद्धार वि० सं० १३९३ के लिखे हुए से) www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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