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श्रेष्ठिगोत्र और समरसिंह।
और इसके साथ नगर के प्राचीन खंडहर यत्रतत्र दृष्टिगोचर अब भी होते हैं।
उपकेशपुर नगर में भगवान महावीर स्वामी का एक विशाल मन्दिर है जो इस नगर का अलंकार रूप है। इस रमणीय मन्दिर की शोभा, इसके उच्च शिखर और सुवर्णमय कलश तथा ध्वजा दंड की अनुपम सुन्दरता से, अलौकिक प्रकट होती थी। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा वीरात् ७० संवत् में प्राचार्य श्री रत्नप्रभ
१ एक टूटे हुए मन्दिर में वि. सं. ६०२ का खुदा हुआ शिलालेख प्राप्त हुआ है। इसी तरह के और भी खण्डहरों से प्रमाण मिल सकते हैं। मोसियां से २० मील की दूरी पर गटियाला नामक ग्राम है उस ग्राम के पास उपकेशनगर के दरवाजों के प्राचीन खण्डहरों के चिह्न आदि अब तक दृष्टिगोचर होते हैं।
कुमलयमाला के कथानक में उल्लेख है कि जब श्वत हुणों ने विक्रम की छठी शताब्दी में इस प्रोर आक्रमण किया तो उपकेशवंशीय लोग मरुभूमि त्यागन कर लाट और गुर्जर देश की मोर चले गये ।
प्राचीन कथानकों में ऊहह मंत्री का जहां उल्लेख हुआ है वहां लिखा है कि उसने उपकेश जातिपर ब्राह्मगों द्वारा लगाया हुआ कर सर्वथा अनुचित समझ कर उस कर को मिटा दिया था। यह वही ऊहह मंत्री है जिसने वीरात् संवत् ७० में उपकेश नगर में महावीरस्वामी का मन्दिर बनवा कर प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठा करवाई थी।
(श्रीमाली वाणियों का जातिभेद नामक पुस्तक)
उपकेशपुर उपकेशवंश और उपकेशगच्छ की प्राचीनता के विषय में जैनजाति महोदय चतुर्य प्रकरण देखियेShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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