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Roorkorecoccoooooooo 8 दूसरा अध्याय।
occo .cocococ0000000000४ आज श्रीष्टिगोत्र और समरसिंह ।
मारे चस्तिनायक श्रेष्टिकुल भूषण समरसिंह के वंश के परिचय को लिखने के पूर्व यह बताना अतिउपयोगी होगा कि इस वंश की उत्पत्ति किस समय तथा किस परिस्थिति में हुई। साथ में यह भी
बताना जरूरी है कि इस वंश के बनने में किस किस प्रकार के संयोग उपस्थित हुए थे।
वर्तमान ऐतिहासिक युग के पूर्वीय व पाश्चात्य धुरंधर और परिश्रमी विद्वानों की खोज एवं शोधने यह सिद्ध कर दिया है कि आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतवर्ष की राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक अवस्था डांवाडोल अर्थात् विश्. कल होकर भारत वर्ष को अवनति के पथ की भोर मप्रसर कर चुकी थी। भारत के कोने कोने से चीत्कार सुनाई देती थी। सिवाय त्राहि त्राहि के और कुछ भी कर्णगोचर नहीं होता था। वर्ण, जाति और उपजातियाँ की शृङ्खला में बंधी हुई जनता सर्वत्र अपनी सर्वशक्तियों का निरंतर दुरुपयोग कर रही थी। साम्यवाद की सुगंधमात्र भी अवशेष नहीं रही थी । ऊँ और नीच के भेद का विनाशकारी गरन सब मोर उगला जा रहा था। विषमता
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