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राजय तीर्थ । श्रीयुत भगवानदास हर्षचंद्र की ओर से मुद्रित हुआ है। आपने परिश्रम कर के संस्कृत के मूल ग्रंथ के साथ साथ गुजराती भाषा में अनुवाद भी किया है जिस के लिये हम और विशेषतया गुजराती भाषा भाषी भगवानदासभाई के विशेष आभारी हैं जिन के कारण कि उन्हें इस अमूल्य उपयोगी संस्कृत ग्रंथ के रसा. स्वादन करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है वास्तव में यह कार्य स्तुत्य और भभिनंदनीय है ।
अभीतक हमारे हिन्दी भाषा भाषी इस लाभ से वंचित थे। इस कमी को दूर करने के उद्देश से मैंने उस मूल ग्रंथ के आधार पर तथा कई अन्य ग्रन्थों की सहायता लेकर समरसिंह का जीवन हिन्दी में पाठकों के सम्मुख रखने का साहस किया है । आशा है मेरा यह प्रयास हिन्दी संसार के लिये बहुत कुछ उपयोगी सिद्ध होगा। यदि पाठकोंने इसे अपनाया तो इसी तरह के और अनेक नररत्नों की जीवनी हिन्दी संसार के सम्मुख रखने का प्रयत्न जारी रख सकूँगा। आगे के अभ्यायों में समरसिंह के जीवन पर क्रम से प्रकाश डालने का प्रयत्न करूंगा ? पाठक आद्योपान्त पढ़ कर इस चरित से आत्मसुधार करने में कुछ प्रवृति करेंगे तो मैं अपने श्रम को सफलीभूत सममूंगा।
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