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समरसिंह। श्रीउपकेश गच्छाचार्य श्री सिद्धसूरिजीने वि. सं. १३७१ में माघ शुक्ल १३ को अपने कर कमलों से करवाई थी। इस के साथ यह भी ज्ञात हुआ है कि प्राचार्यश्री के शिष्यरत्न श्रीमेरुगिरि मुनिने भी इस उद्धार के कार्य को सम्पादन करने में प्राचार्यश्री का विशेष हाथ बँटाया था । मेरुगिरि मुनिने यह काम बहुत योग्यता पूर्वक सम्पादन किया अतः आचार्यश्रीने उन्हें सुयोग्य समझ कर इस प्रतिष्ठा के २१ दिन पश्चात् अर्थात् वि. सं. १३७१ के फाल्गुन शुक्ल ५ को प्राचार्य पद से विभूषित कर उन का नाम ककसूरि रखा ।
आचार्य ककसूरिने उद्धार की सर्व क्रियाएं अपने सामने होती हुई देखी थीं। उन्हें स्थाई स्मरण रूप में रखने के परम पुनीत उद्देश से आपने उस उद्धार के सर्व वृतान्त को एक बृहद् ग्रंथ का रूप देदिया । यह ग्रंथ जिस का नाम मापने · नाभिनंदनोद्धार' रखा था वि. सं. १३९३ में कंजरोट नगर में रह कर लिखा था । इस में सारी घटनाएँ यथार्थ रूप में विद्यमान हैं।
___ उपर्युक्त ग्रंथ हाल ही में अहमदाबाद निवासी साक्षर
१ श्रीपुण्डरीकगिरिशेखर तीर्थनाथ-संस्थापना विधिसुसूत्रण सूत्रधारः ।
श्रीसिद्धसूरिरभवद् गुरुचक्रवर्ती तच्छिब्य एतदतनोद गुरुककसूरिः ॥ २ कंजरोट पुरस्थेन धीमता ककरिणा ।
विनवति सस्ये वर्षे प्रबन्धोऽय विनिर्मितः ।।
-विमल गिरिमंडन-नामिनंदनोद्धार प्रबंध ( प्रांत श्लो० १०२७ अ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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