SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शत्रुंजय तीर्थ । हैं । यह उद्धार यवनकाल में हुआ है जिस का सारा हाल विस्तृत रूप से उस उद्धार को अपनी आंखों से देखनेवाले तथा उद्धार के समय निकट उपस्थित रहनेवाले निवृत्ति गच्छीय श्रीपासड़सूरि के शिष्यरत्न श्री अंब ( आम्र ) देवसूरि ने उसी वर्ष (वि. सं. १३७१ ) में स्वरचित समरारास में उल्लेखित कर दिया है । यद्यपि यह रास संक्षिप्त में है तथापि जो वर्णन उस में दिया गया है वह सुललित और मनोहर भाषा एवं पद्धत्ति से लिखा हुआ है । इस रास की भाषा प्राचीन गुजराती है । रास को अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का समझ कर ही स्वर्गस्थ श्रीयुत चिमनलाल दलालने अपनी वृद्ध अवस्था में 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह ' नामक ग्रंथ में योग्यतापूर्वक इसे सम्यक् प्रकार से सम्पादित कर संकलित किया है और जो गा० श्र० सीरीज बड़ौदा द्वारा प्रकाशित भी हो चुका है । चूँ कि यह उद्धार आधुनिक इतिहास से भी प्रमाणिक साबित हो चुका है अतः इस का महत्व इस जमाने में और भी विशेष है । श्रीतीर्थेश्वर भगवान आदीश्वर की मूर्ति की प्रतिष्ठा 1 १ संत्रच्छरी इकहतर ए थापि उ रिसहजिणंदो । चैत्रवदि सातमि पहुतघरे, नंदउ ए नंदउ जां रविचंदो ॥ ९ पासडसूरिहिं गणहर६ नेउअगच्छ निवासो, तसु सीसिहिं अंबदेवसूरिहिं रचियउ ए रचियउ एर चियउ समरारासे; एहु रासु जो पढइ गुणई नाचिउ जिणहरि देइ, श्रवणि सुणई सो बयठठ ए तीरथ तीरथ ए तीरथ जात फलु लेइ । १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy