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________________ समरसिंह । राजा के श्राग्रह से " शत्रुजय महात्म्य" नामक ग्रन्थ बनाया जो आज भी मौजूद है और पं० हीरालाल हंसराज द्वारा मुद्रित भी हो चुका है । तथा उपकेशगच्छ चारित्र से यह भी पता मिलता है कि उपकेशगच्छीय आचार्य सिद्धसूरिने भी वल्लभी नगरी में पधार कर राजा शिलादित्य को प्रतिबोध देकर शत्रुजय तीर्थ का उद्धार करवाया। इतना ही नहीं बरन् शिलादित्यने प्रत्येक वर्ष के लिये चातुर्मासिक और पर्युषण जैसे पर्व के दिनों में गिरिराज की यात्रा कर अठाई महोत्सब करने की प्रतिज्ञा ली थी, एवं महाराजा गोसल और आमराजा वगैरहने इस पुनीत तीर्थ की यात्रा पूजा कर आत्मकल्याण किया था । सुप्रख्यात गुर्जेश्वर सिद्धराज जयसिंहने भी इस तीर्थ की तेषां श्री ककसूरीणां शिष्या. श्रीसिद्धसूरयः वल्लभी नगरे जग्मु विहरतो महीतले नृपस्तत्र शिलादित्यः सूरिमिः प्रतिबोधितः श्रीशत्रुजय तीर्थेश उद्धारान् विदधं बहून् प्रतिवर्षे पर्युषणे स चतुर्मास त्रये श्रीशत्रुजय तीर्थगत यात्रायै नृपरुत्तमः । (वि. सं. १३९३ का लिखा उ• चारित्र के श्लोक ७३-७४-७५ २ किञ्च तीर्थेऽत्र पूजार्थ द्वादशनाम शासनम् । भदापयदयं मन्त्री सिद्धराजमही भुजा । -वि० सं० १२८८ के लगभग श्रीउदयप्रभासूरि रचित धर्माभ्युदय महाकाव्य के शत्रुजय महात्म्य कीर्तन सर्ग ७ वे का श्लोक नं. ०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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