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________________ ऐतिहासिक प्रमाण। २२३ संवत् १४१४ वर्षे वैशाख शुदी १० गुरौ संघपति देसलसूत सा० समरासमर श्रीयुग्मं सा० सालिग सा० सज्जनसिंहाभ्यां कारितं प्रतिष्टितं श्रीकक्कसूििशष्यैः श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।। शुभं भवतुः शिलालेखों की वंशावली ही को अधिक विश्वसनीय इस लिये मानना चाहिये. क्योंकि नाभिनंदनोद्धार प्रबंध में दी हुई वंशावली जो समरसिंह के समकालीन प्राचार्यद्वारा लिखी गई है शिलालेख की वंशावली से ठीक मिलती है । प्रशस्ति के अष्टम पद्य से स्पष्ट होता है कि देसलशाह के प्रथम पुत्र सहज " कर्परधारा" विरुद से विभूषित थे और इस के आगे के पद्य से यह भासित होता है कि सहज का पुत्र सारंगशाह शुद्ध अंतःकरण वाला सूर्य की तरह विमल गुणों से प्रतापशाली था । इन के लिये "सुवर्णधारा" विरुद जीवन पर्यंत शोभा पा रहा था । दसवें पद्य से ज्ञात होता है कि देसलशाह के दूसरे पुत्ररत्न साहण अपनी प्रखर बाद्धे चातुर्य के लिये सदैव बादशाहों से सम्मानित होते थे । जिन्होंने देवगिरि (दोलताबाद) में पर्वत के शिखर सदृश सुवर्ण के कलश और ध्वजादंड संयुक्त जिनेश्वर भगवान् का भीमकाय मन्दिर बनवा कर धर्म के बीज का वपन किया था । समरसिंह के प्रबंध से मालूम होता है कि सहजाशाहने देवगिरि को ही अपनी निवास भूमि बनाली थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने चौबीसों भगवानों के मन्दिर और गुरुवर्य और सच्चिका देवी के लिये भी चैत्य बना लिये थे जिस का उल्लेख हम मूलग्रंथ में पहले ही यथास्थान कर चुके हैं। - प्रशस्ति के ११-१२ वें श्लोक में हमारे चरितनायक साहसी समरसिंह का संक्षिप्त परिचय दिया गया है कि संघपति देसलशाह के तीसरे पुत्र समरसिंह थे। जिन की धवलकीर्ति विश्व में दिवानाथ की रश्मियों की नाई चहुँ और प्रस्तारित थी । धर्मवीर एवं दानेश्वरी समरसिंहने अपनी उत्साहपूर्ण कार्य कुशलता और बुद्धिबल से उस विकट समय में पुनीत तीर्थाधिराज श्रीशत्रुजय गिरि का उद्धार करा के भरत और सगर जैसे प्रतापी चक्रवर्तियों से भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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