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________________ २१५ समरसिंह का शेष जीवन । अभिलिषित इच्छा को पूर्ण कर हृदय में परम प्रसन्न हुए । सुलतान की ओर से समरसिंह का अपूर्व स्वागत किया गया । बादशाहने भरी सभा में यह वाक्य कहे कि सर्व व्यवहारियों में समरसिंह का प्रथम स्थान है । इस प्रकार बादशाहने समरसिंह का बहुमान किया। बादशाह के महमान रह कर चरितनायकजीने बहुत से दिन दिल्ली में प्रसन्नता पूर्वक बिताये। एक बार समरसिंह की गुणग्राहकता की प्रशंसा सुन कर एक गवैया उन के सामने उपस्थित हो वार घाव तर्ज़ की कविता सुनाने लगा। मापने प्रसन्न हो कर उदारता पूर्वक एक सहस्र टंक गवैये को प्रदान कर उसे निहाल किया । कुतुबुद्दीन और आपश्री में खूब घनिष्ट सम्बन्ध रहा । इस के बाद में कुतुबुद्दीन की राज्यलक्ष्मी के तिलकस्वरूप ग्यासुद्दीन बादशाह हुआ । उस समय उसने अति प्रमोद और उल्लासपूर्वक भापश्री का आदर सम्मान किया। समरसिंह की प्रतिभा का प्रभाव बादशाहपर था जिल का प्रमाण यह है कि खान के यहाँ पाण्डदेश का राजा वीरवल्ल ( बीरबल ) बंदी की तरह कैद था। ह सुअवसर पाकर बुद्धिशाली समरसिंहने वादशाह का ध्यान उस ओर आकर्षित किया जिस के परिणामस्वरूप वीरवल्ल जेल से मुक्त हो कर अपने देश को सकुशल प्रसन्नतापूर्वक लौट गया। वहाँ पहुँच कर उसने अपने राज्य को फिर से अपने हाथ में लिया । वह इस उपकार के लिये हमारे चरितनायकजी की चतु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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