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नववाँ अध्याय
समरसिंह का शेष जीवन ।
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द्धसूरि के पश्चात् श्रीककसूरि गच्छ को चला रहे थे । बाप के शासन में हजारों साधु साध्वियें और करोड़ों श्रावक आत्मकल्याण कर रहे थे।
आप बड़े ही प्रभावशाली और धर्म प्रचारक थे उस समय सार्वभौमिक बादशाह कुतुबुद्दीन के कानों तक समरसिंह की प्रशंसा पहुँची। बादशाहने तुरन्त फरमान लिख कर हमारे चरित नायकजी से मिलने की प्रबल उत्कंठा प्रकट की । जब यह संदेश
आप के पास पहुँचा तो चरितनायकजीने प्राचार्य ककसूरिजी के पास भाकर अनुमति मांगी । सूरीश्वरजीने भी स्वरोदय बान से वासक्षेप दिया । इस भाशीर्वाद को ग्रहण कर भाप बादशाह से मेंट करने के लिये तैयारी कर दिल्ली की ओर पधारे । दिल्ली में पहुँचते ही मीरत्राण (सुलतान)ने समरसिंह को बुला कर दर्शन किये । हमारे चरितनायकजीने बादशाह के सम्मुख भेंटस्वरूप कुछ अमूल्य पदार्थ रख कर नम्रतया नमन किया। उस समय बादशाहने आप को स्नेहभरी दृष्टि से देखा और अपनी चिर
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