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सिद्धसूरि ।
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रहें तब संघ क्षमणापूर्वक मुझे अनशन करा देना । किन्तु कक्कसूरिने यह समझ कर कि कलिकाल में यह मृत्युज्ञान कब संभव है निश्चित दिन पर अनशन व्रत नहीं दिया । गुरु महाराजने स्वयं दो उपवास किये। इसके बाद संघ के समक्ष अनशन व्रत पञ्चक्खाया गया । सहजपाल आदि उदार सुभावकोंने इस अवसर पर महोत्सव मनाया । नगरभर के सारे लोग-बूढ़े, जवान और बालक गुरुश्री के दर्शनार्थ आए । उस नगर से पांच योजन दूर तक के सब लोग दर्शनार्थ झुंड के झुंड आने लगे | छ दिनों के बाद बताए हुए समय में सिद्धसूरिजी नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए समाधीपूर्वक स्वर्ग सिधारे । सूरीश्वर की ज्ञान की प्रशंसा करते हुए लोगों ने बड़े समारोह से उत्सव मनाया । मुनिलोगों से पूजित सूरीश्वर को ६ दिन में तैयार की हुई २१ मंडपवाली मांडवी ( विमान ) में स्थापित किया। जगह जगह पर होते हुए रास, दंडी, रास प्रेक्षणक और आगे बजते हुए बाजों सहित सूरीश्वर विमान में बैठे हुए साक्षात् देव की तरह देवलोक की यात्रा के लिये नगर में हो कर निकले । स्पर्धापूर्वक स्कंध देते हुए श्रावक विमान को बात ही बात में एक कोस तक ले गये ।
सूरिजी के शरीर का दाह संस्कार केवल चन्दन, काष्ट, अगर, और कर्पूर से किया गया । वि. सं. १३७५ के चैत्र शुक्ला १३ के दिन सूरीश्वर स्वर्ग सिधारे ।
१ षट्सप्ततिसंयुतेषु त्रयोदशशतेष्वथ । चैत्रशुद्धत्रयोदश्यां सूरयः स्वर्भुवं ययुः ॥
- नाभिनंदनोद्धारप्रबंध प्रस्ताव ५, श्लोक १००४.
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