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________________ ૨૨ समरसिंह कि आपका भायुष्य भी केवल एक महीने का शेष है। अतः मैं उपकेशपुर ( ओसियों) में जाकर स्वयं कक्कसूरि (प्रबंधकार) को मुख्य चतुष्किका समाधी में स्थापित करूँगा। आपकी भी इच्छा हो तो वहाँ शीघ्र चलिये । देवनिर्मित वीर भगवान् का वह तीर्थ अति उत्तम है । सब सामग्री को संग लेकर संघ और देसलशाह आचार्य श्री सिद्धसूरि सहित चले । किन्तु मार्ग ही में देसलशाह का देहावसान हो गया । आचार्यश्री सिद्धसूरिजीने माघ शुक्ला पूर्णिमा को अपने करकमलों से ककसूरि को अपने पद पर स्थापित किया । उसी अवसर पर रत्नमुनि को उपाध्याय पद तथा श्रीकुमार और सोमेन्दु इन दो मुनियों को वाचनाचार्य पद अर्पण किया गया । देसलशाह के साहसी पुत्र सहजपालने अठारह कुटुम्बियों सहित वीर भगवान का स्नान कराया। प्राचार्य आदि मुनियों को आहार आदि देकर प्रतिलाभ करते हुए उन्होंने स्वामीवात्सल्य भी किया। यहाँ पर अष्टाह्निकोत्सव सम्पादन कर आचार्यश्रीने फलवृद्धिका ( फलोधी ) की भोर विहार किया । वहाँ पहुंच कर श्री पार्श्वप्रभु को वंदन कर आचार्यश्री संघ सहित विहार करते हु बापस पत्तनपुर पधारे । सिद्धसूरि महाराज की भायुष्य का जब एक मास शेष रहा तो भापश्रीने अपने शिध्वरस्न भी ककसूरि प्राचार्य को सम्बोधन कर भादेश दिया कि जब मेरे मरने के आठ दिन शेष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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