________________
ShashSjO45S$ a आठवाँ अध्यायन
आचार्य सिद्धसूरि का शेष जीवन
BULUDI
CV.
000000000
0.
ह: मारे चरित नायक राज्य सन्मान से उन्नति करते हुए
अपने जीवन को परोपकार के कार्य करते हुए बिताने
लगे। वि. सं. १३७५ में देसलशाह पुनः सात संघपति, गुरु और ७२००० यात्रियों सहित सर्व महातीर्थों की यात्रार्थ पंधारे थे। पहले की तरह दो यात्राएं की। इस में ११,००,००० ग्यारह लाख से अधिक रुपये व्यय हुए। उस समय सौराष्ट्र प्रान्त में जैनी लोग म्लेच्छों के अत्याचार से पीड़ित थे उनसे हमारे चरितनायकने प्रतिद्वंद कर जैनियोंको सुरक्षित कर म्लेच्छोंके बंधनों से उन्मुक्त किया।
प्राचार्य श्री सिद्धमूरि अपने आयुष्य के सिर्फ तीन ही महीने अवशेष रहे जान कर देसलशाह को सम्बोधन कर बोले
, पथसप्ततिसङ्येऽन्दे देसलः पुनरप्यथ । सप्तभिः सहपतिभिरन्वितो गुरुभिः सह ॥ महातीर्थेषु सर्वेषु सहस्रद्वितीयेन सः । साधं याति करोति स्म द्वियात्रामेष पूर्ववत् ॥ व्ययस्तु तत्र यात्रायां लक्षा एकादशाधिकाः । द्विवलक्या उम्मसत्काः खयं देसनसाधुना ॥
-नाभिनंदनोद्धार प्रबंध प्रस्ताव ५, श्लोक ९७३-७५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com