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________________ प्रतिया के पचात् । जनक पूर्व वृतान्त इस प्रकार है । एक ब्राह्मण की पत्नी जिस का नाम अम्बा था एक बार मुनिराज को अन्नदान दे रही थी। इस बात पर उस का पति बहुत क्रोधित हुआ जिस के फलस्वरूप वह ब्राह्मणी अपने दो पुत्रों सहित घर से निकल कर श्रीगिरनार तीर्थ पर श्रीनेमीश्वर भगवान् के शरण में पहुँची। प्रभु को नमन कर वह आम्रवृक्ष के नीचे जा बैठी । वहाँ जब वह अपने पुत्रों को आम्रफल देकर राजी कर रही थी कि यकायक उसने अपने पति को वहाँ आता हुआ देखा । पति को देख कर वह ब्राह्मणी बहुत ही डरी । भय से व्याकुल हो वह शिखरपर से कूए में कूद पड़ी। वहाँ वह मर गई और तीर्थ की अधिष्ठायक देवी प्रकट हुई। उसी के स्मरणार्थ कोडीनार में उस देवी की वह मूर्ति थी जिस की पूजा का ऊपर वर्णन किया गया है । अनुक्रम से संघ चलता हुआ द्वीपवेलाकूल ( दीवबंदर ) आया । समरसिंह के स्नेही दीव स्वामी मूलराजने दो नौकाओं को आपस में बांध कर उन के ऊपर एक मजबूत चटाई स्थापित की और उस के ऊपर देवालय को स्थापित कर संघपति सहित नौका को जल में चलाया। उस समय का दृश्य अति मनोहर संवं चित्ताकर्षक था। अनुक्रम से दूसरे संघ के यात्री भी दीव पहुँचे । दीव ग्राम के क्रोडपति व्यवहारी हरिपालने संघ का अपूर्व स्वागत किया । यहाँपर भी संघपतिने अष्टानिक उत्सव मनाया । याचकों को मनमांगा दान दिया गया । यहाँ से चल कर संघपति एक बार और शत्रुजय तीर्थ की यात्रार्थ पधारे थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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