SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिहा। १९१ शुभ लग्न के समय पर एक हाथमें रजत कचौली तथा दूसरे हाथमें सुवर्ण सलाई लेकर आचार्यश्री सिद्धसरिजी महाराज अंजनशलाका प्रतिष्टा करने को तैयार हुए। प्रतिष्टा सम्बन्धी वेला निकट पाई। उस समय उस भव्यभवनमें 'समय' 'समय' ऐसी आवाज चारों दिशाओं से सुनाई दी। प्रतिष्टा के समय सिद्धसूरि १ वि. सं. १३७१ की यह प्रतिष्टा उपकेशगच्छ के प्राचार्य श्री सिद्धसूरि द्वारा हुई थी। यह उपर्युक दर्शित प्रामाणिक रास व प्रबंध के उल्लेख से स्पष्ट है। इतने पर भी वि. सं. १४९४ में रचित मिरनार तोये पर की विमलनाथ प्रासाद की प्रशस्ति (बृहत्पोशालिक पट्टावली में सूचित श्लोक ७२) में, पं. विवेकधीर गणि रचित वि. सं. १५८७ के शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबंध (अात्मानंद सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित ) के उल्लास १, श्लोक ६३ में, वि. सं. १६३८ में नयसुन्दर गणि रचित शत्रुजय रास में और इन्ही के आधार से लिखने वाले पाश्चात्य लेखकोंने यह बतलाया है कि इस प्रतिष्टा को कराने वाले आचार्य श्री रत्नाकरसूरि थे । यह उल्लेख उन्होंने बिना रास और प्रबंध को देखे किया है । उनके उल्लेख इस प्रकार हैं। " आसन् वृद्धतपागणे सुगुरवो रत्नाकरावा पुरा ऽयं रत्नाकर नाममृत् प्रववृते येभ्यो गणो निर्मलः । तैश्चकै समराख्य साधुरचितोद्धारे प्रतिष्ठा शशिद्वीय व्येकमतिषु १३७१ विक्रमनृपादब्देष्वतीतेषु च ॥ ६३ ॥ प्रशस्त्यन्तरेऽपिवर्षे विक्रमत: कु-सप्त-दहनकस्मिन् १३७१ युगादि प्रभु श्री शशुंजय मूलनायकमतिप्रौढप्रतिष्ठोत्सनम् । साधुः श्री समराभिधास्त्रिभुवनीमान्यो वदान्यः क्षितौ श्री रत्नाकरसूरिभिर्गणधरौः स्थापयामासिवान् ॥ (गिरनार-विमलनाथ प्रासाद की प्रशस्ति ।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy