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________________ -१९ समरसिंह. नायक सहजाशाह सहित बांई ओर उपस्थित थे । बांई ओर रहे हुए हमारे चरितनायकने जिनमज्जन कराया | सांगण और सामंत उभय भ्राता चामर लेकर जिन सम्मुख स्थित रहे । चक्षु रक्षा के निमित्त अरिष्ट ( अरेठा ) की माला उरस्थल में स्थापित कराई गई । कर्पूर, चंदन, फूल, अक्षत, धूपकालेयक, अगर और कस्तूरी आदि युक्त प्रतिष्ठा योग्य वस्तुओं को तैयार कर रङ्गी, और गुरुने देसलशाह आदि श्रावकों के कंकण रहित हाथ में मदनफल कौसुंभ सूत्र से बांधा । इस प्रकार प्रतिष्टा - सामग्री तैयार होने पर आचार्यवरने स्नात्रकारों द्वारा स्नात्र आरम्भ कराया । लग्न घटी को स्थापित कर एकाग्र चित्तवाले आचार्यश्रीने अधिवासना मुहूर्त को सिद्ध किया । जिन बिंब को उत्तम लाल वस्त्र से ढक कर श्रीखण्ड सुगंधित पदार्थों से पूज कर मंत्रों द्वारा सफल किया । हमारे चरितनायक गुरुकी पोषधशाला में पधारे और वहाँ से नंद्यावर्त के पट्टको सधवा स्त्री के मस्तक पर रख कर शीघ्र आदीश्वरजिन के चैत्य में पधारे और वह गाजेबाजे से मंडप वेदीपर रखा गया । आचार्य श्री सिद्धसूरि पट्टके समीप गये और विधियुक्त प्रालेखित सुयंत्रको कर्पूरसमूह से पूजा | सिद्धाचार्यजीने नंद्यावर्त मंडल बनाया और मंत्रबादियोंने कर्पूर आदिसे उसकी पूजा कर उसे दोष रहित किया । सारे माचायोंमे नंद्यावर्त की पूजा की । पुनः वापस लौटकर सिद्धसूरिजी चाविजिन के पास जाकर लमसिद्ध करने को प्रस्तुत हुए । कौसुम्भ कंकण भी बांधे जाने लगे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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