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प्रतिष्य ।
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हमारे चरितनायकने करवा कर उस के ऊपर चार स्तम्भ स्थापित करवाए थे जिन के ऊपर शिखर की तरह सुवर्ण कलश स्थापित कराया गया था । यह मंडप उत्तम वस्त्रों से तथा केले आदि के पल्लवों से सजाया गया था । उसी के निकट में आदीश्वर प्रभु के मुख्य मन्दिर के ध्वजायुक्त महादंड की प्रतिष्टा करने के हेतु सूत्रधारों द्वारा उसे वेदिपर रखवाया था | आदीश्वर के जिन मन्दिर के चारों तरफ प्रतिष्टा के हित मूल सहित डाभ और उत्तम बालू धूल से वेदिकाऐं बनवाई गई थीं । मन्दिर के द्वारों पर आम्र पञ्जवों की बंदणमालाऐं सुशोभित थीं । आचार्य श्री सिद्धसूरिजीने गोरोचन, कुंकुम, चंद्र ( कर्पूर ), कस्तूरी, चंदन और अन्य सुगंधित वस्तुओं के लेपवाली महामूल्य चीजों से नंद्यावर्त पट्ट की भालेखना की ।
इस के बाद घटीकारोंने जलयुक्त कुंड से घड़े भर कर रखे । मंगल मुहूर्त्त को देख कर आचार्य श्री सिद्धसूरि जिन मन्दिर के अन्दर पधारे ! अन्य आचार्य वर भी प्रतिष्टा कराने के लिये चैत्य में पधार कर अपने अपने स्थान पर विराजमान हुए। इतने ही में संघपति देसलशाह अपने पुत्रों सहित निर्मल जल से स्नान कर मनोहर और विशुद्ध वस्त्र धारण कर ललाट पर श्रीखण्ड चन्दन से तिलक कर भक्तिपूर्वक चैत्य में प्रविष्ट हुए । अन्य श्रावक भी उस स्थान पर इसी प्रकार पहुँचे । आचार्य श्री सिद्धसूरिजी आदि जिनेश्वर के सम्मुख और संघपति दे सनशाह साइण सहित दाहिनी ओर तथा हमारे चरित
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