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फरही और मूर्ति.
१७२ मजबूत गाडी सहित कुमारसेना नगर को भेज दिये गये । साथ में ऐसे सावधान और कायकुशल लोगों को भी भेजा जो फलही को बड़ी आसानी से निर्विघ्नतया ले आ सकें । फलही में इतना भार था कि लोह की मँढी गाडी भी टूटकर चकनाचूर हो गई । मंत्रीश्वर पाताशाहने समरसिंह के पास आदमी भेजकर दूसरी गाडी मंगवाई । शुभकार्य में यह विघ्न देखकर हमारे चरितनायक चिंता सागर में निमग्न हो गए। अंत में समरसिंहने शासनदेवी का स्मरण तथा अाराधन किया। शासनदेवीने आकर तुरन्त आश्वासनपूर्वक सर्वयुक्ति बतला दी । तदनुसार समरसिंहने जंजाग्राम से देवाधिष्ठित रथ मंगवा के बलवान् बैलों और चतुर मनुष्यों को कुमारसेना नामक ग्राम भेजा । बस, सब विघ्न दूर हो गये और मंत्रीश्वर पाताशाहने बड़ी खूबी से उस शिला को गाडीपर चढ़ा के रवाना की । ग्राम ग्राम के लोग कदम कदमपर उस भावी मूर्ति की पुष्प, चन्दन, कपूर और पुष्पों से पूजन करते थे क्रमशः सब खेरालुपुर आ पहुँचे। वहाँ के संघने भी भक्तिपूर्वक उस फलही का द्रव्यभाव से पूजन कर नगर प्रवेश कराया।
खेरालुपर से रवाना हो पगपग पूजित होती हुई कितने ही दिनों बाद फलही भाई नामक ग्राम में पहूँची । उस समय फलही के दर्शन की उत्कंठा से देसलशाह अपने पूज्य आचार्य श्री
१ समरारासकारने इस विषय को संक्षिप्त से लिखा है परन्तु प्रबन्ध कारने इस को खूब विस्तृतरूप से उल्लेख किया है क्यों के प्रबन्धकारने यह बातें सब अपनी
प्रांखों से देखी थीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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