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________________ १७० समर सिंह.. यह प्रबंध किया कि उस फलही को एक मजबूत रथ में रखा दी गई। रथ के आगे और पीछेसे फलही मजबूत रस्सों से बांध दी गई । रथ को खींचने के लिए बलवान धवल -- बैल रथ में जोते गए थे । रथ के चलते समय पहियों पर तेल की धारें प्रवाहित हो रही थीं। पहाड़ो का रास्ता ऊँचा नीचा था जिसे मजदूर साफ़ कर रहे थे | इस प्रकार प्रबल प्रयत्न से फलही पहाड़ी भूमि को पारकर मैदान में लाई गई । कुमारसेना नामक ग्राम के निकट जो समभूमि है वहाँ पर रथ ठहराया गया तो त्रिसंगमपुर के लोग फलही को देखने के लिए ठट्ठ के ठट्ठ आने लगे । इस प्रकार एक बड़ा समारोह हो गया । पाताशाहने समरसिंह को संदेश भेजने के लिए पाटण को आदमी भेजे । आदमियोंने जाकर हमारे चरितनायक को वे समाचार सुनाए जिसकी कि वे प्रतीक्षा कर रहे थे । यह सुनकर कि फलही कुमारसेना ग्राम के पास पहुँच गई है वे परम प्रसन्न हुए । हमारे चरितनायकने बलवान बैलों की खोज करवाई लोगोंने देसलशाह और समरसिंह को सहायता करने के लिए बैल बिना किराए ही दे दिये । क्योंकि इन्होंने अपने अलौकिक गुणों द्वारा सब के हृदय में विशेष स्थान कर रखा था । समरसिंहने आए हुए बैलों में से १० बैल जो सर्वोत्तम थे चुने | जिन लोगों के बैल समरसिंहने पसंद नहीं किये थे वे अप्रसन्न हुए | किन्तु समरसिंहने उन्हें मधुरवाणी से समझाया कि मैं बिमा जरूरत सब बैलों को तकलीफ देकर क्या करूं। बैल एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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