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उद्धार का फरमान ।
अपने भवन को पधारे | घर पर पधार कर आपने सारा वृत्तान्त अपने पुत्र समरसिंह से कहा। समरसिंहने पिताश्री के प्रस्ताव का भनुमोदन करते हुए प्रतिज्ञापूर्वक कहा कि मैं आपके चरणों को स्पर्श कर शपथपूर्वक यह प्रण करता हूँ कि जहाँ तक मेरे शरीर में शोणित का एक बूंद रहेगा वहाँ तक मैं सहस्रों और लाखों बाधामों के उपस्थित रहते हुए भी भक्तिपूर्वक तीर्थ के उद्धार को कराऊँगा । पश्चात् वे आचार्य श्री सिद्धसूरिजी के समक्ष उपस्थित हुए और अपने पिताश्री के प्रस्ताव का हृदय से समर्थन कर अनुमोदना को दृढ़ प्रमाणित करने के लिये हमारे चरितनायकने प्रतीक्षा की कि जब तक हमारे द्वारा इस तीर्थ का उद्धार न होगा तब तक मैं
( १ ) बह्मचर्य व्रत का अविरल पालन करूँगा । (२) भूमिपर शय्या बिछा कर लेदूँगा। खाट या
पलंग का प्रयोग न करूंगा। (३) दिन में केवल एकबार ही भोजन करूंगा। ( ४ ) छ विगय में से प्रतिदिन केवल एक विगय का
ही सेवन करूँगा। ( ५ ) शृङ्गार के लिये उबटन और तेल मर्दन कर के
स्नान नहीं करूँगा। हमारे चरितनायकने गुरुवर्य के सम्मुख उपरोक्त भीष्म प्रतिज्ञाओं को लिया । इस प्रकार इन की दृढ़ता को देखकर
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