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समरसिंह
गुरुराजने समरसिंह के साहस और धर्मस्नेह की अनुमोदना कर उचित सलाह आदि दी । वहाँ से चल कर हमारे चरितनायक जिन मन्दिर में पधारें जहाँ इन के पिताश्री प्रभु पूजा में निमन थे । सारी वार्ता उन के सामने वर्णन कर आपने निवेदन किया कि यदि आप की आज्ञा हो तो मैं तीर्थोद्धार के लिये अलपखान ' से आज्ञापत्र लिखवा लाऊं । इस से यह सुविधा रहेगी कि इस कार्य में किसी भी प्रकार की आपत्ति उपस्थित नहीं होगी । देशलशाहने अनुमति दे दी ।
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हमारे चरितनायक राजनीति - कुशल थे ! इस कार्य को शीघ्रतया सम्पादित कराने के उद्देश से उस समय की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए आपने राज्य की सहायता लेना सर्वथा उपयुक्त और उचित समझा । अतः बहुमूल्य वस्तुओं को लेकर आप अलपखान की राज्यसभा में उपस्थित हुए । नम्रतापूर्वक भेंट के पदार्थों को खान के सम्मुख रख अपने यथाविधि अभिवादन किया ।
अलपखान भी योग्य आदमी की कद्र करना खूब जानते थे । अतः खानने आप का यथोचित सत्कार किया और पूजा कि क्या वजह है कि आज आप भेंट सहित पधारे हैं । वैसे यह आप का घर है । मेरे योग्य कोई कार्य हो तो अवश्य कहिये मैं यथासाध्य उस कार्य को शीघ्र ही करूँगा । इस पर आपने श्री शत्रुंजय तीर्थ पर किये गये यवनों के आक्रमण का वृतान्त सवि
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