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समर सिंह.
[ अवशिष्ट संख्या ४ ]
श्री उपकेशगच्छाचार्यों द्वारा जिनमन्दिर-मूर्तियों की कराई हुई प्रतिष्टा ।
यों तों उपकेशगच्छाचार्योने हजारों मन्दिरों व लाखों मूर्त्तियों की प्रतिष्टा करवाई थी जिसके यत्र तत्र अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं । उन प्रमाणों से यह भी पता मिल शक्ता है कि मरूभूमि, सिन्ध, कच्छ और पंजाब वगैरह प्रान्तोंमें परिभ्रमण -- कर वे जैसे २ अजैनों को जैन बनाते गये वैसे २ उन्होंके आत्म कल्याण निमित्त जैन मन्दिरों की प्रतिष्टा भी करवाई । बात भी ठीक है । उस समय की विशाल जनसंख्या के लिये अधिक संख्यामें मन्दिर बनाने की आवश्यक्ता भी थी । अगर कथानक साहित्य का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया जाय तो ऐसे प्रचुर प्रमाण भी मिल सकेंगे । श्रीमालनगर, पद्मावती, चन्द्रावती, शिवपुरी, उपकेशपुर, कोरंटपुर, शिवनगर, मथुरा, वल्लभीनगरी, कन्याकुब्ज, माधपुर, सोपारपुर, जाबलीपुर, मारोटकोट, राणकगढ़, त्रिभुवनपुर, किराटकूप, वणथली, देवपाटण, मरुकोट, उच्चकोट, लोद्रवा पट्टण, जंगालू, पंचासरा, स्थंभनपुर, भरूच, अणहिलपुरपट्टण और अंजारी इत्यादि अनेक नगरों के नृपतियों को प्रतिबोध दे कर उपकेशगच्छाचार्यों ने जिनालयों से भूमि विभूषित कर दी थी ।
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इस ऐतिहासिक युगमें हम उन सब मन्दिरों के शिलालेखों
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