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उसकेसपथ परिका। को ढूंढने को ना तो सब के सब शिलालेख मिलना तो बहुत ही कठिन है क्योंकि इस के कई कारण हैं। कई मन्दिर-मूर्तियों वो विधर्मियों के अत्याचारों से नष्टभ्रष्ट हो गई जिन के खंडहर भी मिलना दुर्लभ सा हो गया है और पूर्व जमाने में कई पुराने मन्दिरों के स्मारक कार्य करते समय शिलालेखों या प्राचीनता की दरकार भी नहीं रखी जाती थी। जैसे पुनीत तीर्थ शत्रुजय पर प्राचीन समय से ही मन्दिरों की बड़ी भारी हरमाल थी पर उन के शिलालेख इतने प्राचीन नहीं मिलते हैं। इसी तरह अन्य मन्दिरों का भी हाल है। पर हम इस विषय में सर्वथा हताश भी नहीं हैं। आज पूर्वीय और पाश्चात्य पूरातत्त्वज्ञों की शोध और खोज से अनेक स्थानोंपर प्राचीन खंडहर और शिलालेख उपलब्ध हुए हैं। उडीसा प्रान्त की खण्डगिरि और उदयगिरि, प्राचीन पहाड़ियों की गुफाओं में प्राचीन मूर्तियों और शिलालेख तथा मथुरा का कंकालीटीला के खोदकाम से अनेक प्राचीन मूर्तियों और शिलालेख उपलब्ध हुए हैं। देवगिरि (दौलताबाद ) के किलों में सेंकडों मूर्तियों निकल चूकी हैं। वे शिलालेख वगैरह दो हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीन हैं फिर भी हम भाशा रखते हैं कि जैसे २ अधिकाधिक शोष
और खोज होती रहेगी वैसे २ इस विषयपर भी खूब प्रकाश पढ़ता जायगा । यह निसंदेह है कि जैनाचार्यों के उपदेश से जैन राजा महाराजा और सेठ साहूकारोंने असंख्य द्रव्य व्यय कर जैन मन्दिरों से मेदिनि-भूषित कर दी थी। ___ वर्तमान के उपलब्ध शिलालेख जिनमें से कई मुद्रित भी
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