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________________ १३२ क्रम संख्या १ ५ ६ मूल गोत्र शाखाऐं | किस नगर में प्रतिबोध दिया आर्य अहवड़ लुणावतादि छाजेड़ सूरावतादि शिवगड़ राखेचा पुंगलियादि कालेर काग धाम गाँव ....... घाडावतादि गरुड सालेचा बोहरादि बघारेचा सोन्यादि कुंकुंम सफला नक्षत्र ११ आभड १२ छावत १३ घीयादि वटवाडाप्राम कांकरेचादि सांभर कोजादि धारानगर तुण्ड वागमारादि तुण्डग्राम १४ पिछोलिया पीपलादि पाल्हरणपुर १५ हथुण्डिया छपनयादि १६ भंडोवरा रत्नपुरादि १७ मल वीतरागादि १८ गुंदेचा गोगलियादि इथूण्डी भंडोर मत्यपुर पाटण वगारा धूपियादि कनौज बोहरादि जावलीपुर खेड़ ग्राम पावागढ़ समरसिंह. प्रतिबोधक प्रतिबोधक | विक्रम आचार्य संवत् देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि x देवगुप्तसूरि कक्कसूरि† सिद्धसूरि ८७८ १०११ १०४३ ९१२ 93 १००९ ८८५ कक्कसूरि देवगुप्तसूर सिद्धसूरि १२२४ कक्कसूरि ९९४ ६८४ ९४२ |१०७९ 99 सिद्धसूरि १०७३ ६३३ " देवगुप्तसूरि १२०४ ११९१ 97 सिद्धसूरि " देवसरि ९३५ ९४९ |१०२६ *x * इन आचार्योंके नाम के कई प्राचार्य हुए है अर्थात् तीसरे पाट वेही नाम माते हैं । विशेष दृष्टव्य - इन के अतिरिक अन्य भी बहुत से गोत्र उपकेशगच्छ आचायौने बनाये जिन को साक्षियों भादि भाज पर्यंत उपकेश मच्छीम महात्माओं की बहियों में विद्यमान है जिसका पूर्व ब्योरा जैन माति महोदय में दिया जावेगा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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