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________________ ૨૨૨ समरसिंह यक्षदेवसूरि-जिन्होंने दुष्काल के पश्चात् बनसेनसूरि की सन्तान को सुव्यवस्थित कर चन्द्रादि चार कुलों की स्थापना की। देवगुप्तसूरि-जिन्होंने कान्यकुब्ज नरेश चित्रांगद को प्रतिबोध | दे कर अनेक मनुष्यों के साथ जैनी बनाया । यक्षदेवसूरि—जिन्होंने संघ या मन्दिर मूर्तियाँ के लिये प्राणार्पण करने को कटिबद्ध हो म्लेच्छों के आक्रमणों से धर्म की रक्षा की। नन्नप्रभ महत्तर (एक महान् पदवीधर ) यक्षप्रभ महत्तर कृष्णर्षि महत्तर-जिन्होंने मरुभूमि-सपादलक्ष और नागपुर (नागोर) प्रान्त में जैन धर्म का साम्राज्य स्थापन कर भनेक मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टा कीककसूरि-जिन्होंने उच्चकोट, मरुकोट, राणकगढ़ और त्रिभुवन| गढ़ के राजा प्रजा को जैन बना के अहिंसाधर्म का प्रचार किया। कमसूरि-जिन्होंने संचेति कुलभूषण कदर्पि के बनाये गये विशाल । मन्दिर की बड़ी ही चमत्कारपूर्ण प्रतिष्टा की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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