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उपकेशगच्छ-परिचय । छोड़ कर पलायमान होने लगी। वरिभद्रने पुनः वहाँ आ कर जनता को विश्वास दिलाया कि आपका और तीर्थ का मैं रक्षण करूंगा। तब म्लेच्छ लोगोंने एकाकी नगर पर धावा करने का निश्चय किया परन्तु वीरभद्र की विद्या के आगे उनकी दाल नहीं गली । वे नगरप्रवेश भी न कर पाये | अत: उपद्रव की सहज ही में शांति हो गई।
वीरात् ३७३ वर्ष में आचार्य श्री ककसरिने एक सिद्धयंत्र ताम्र-पत्र पर मंत्रयुक्त बनवाया था वह जीर्ण हो गया था। अतः उसका उद्धार सिद्धसूरिने कराया (वि. सं. १२६५) वीरभद्र एक बड़ा ही चमत्कारी, विद्याविज्ञ, साहित्यज्ञ, न्यायी, ज्योतिषी
और चिकित्सक विद्वान था जिस के पास अठारहों गच्छों के साधुओंकी ज्ञानाभ्यासार्थ भीड़ लगी रहती थी। विहार के समय में भी वे सब साधु उस के साथ रहते थे और उनके आहार, पानी, वस्त्र और पात्रों की योजना भी वह करवा दिया करता था। पिछली अवस्था में वह सिन्ध प्रांत में अधिकाँश रहता था। इसकी लोक ख्याति इतनी प्रस्तारित थी कि राजा और प्रजा दोनों इसकी मान सत्कार किया करती थी और वीरभद्र को अपना परम गुरु समझती थी। मरुकोट नगर के पार्श्वनाथ जिनालय में एक क्षेत्रपाल था जो नेमीनाथ जिनालय के गोठी को पीड़ा पहुँचाया करता था। वीरभद्रने उसका कष्ट भी नष्ट किया।
___एक बार ये पलहनपुर पधारे । वहाँ की राजसभा में विश्वमल नृपति और विशल मंत्री की संरक्षता में कृष्ण नामक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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