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________________ ११० उमर सिंह अपराध बन पड़ा कि ये आचार्यगण मेरी नगरी को सहसा छोड़ रहे हैं। वह लौट कर सीधा हेमचन्द्राचार्य के पास उपस्थित हुआ और सब हाल कह सुनाया । हेमचन्द्राचार्य ने भी इस घटना से अपरिचित होना प्रकट किया। हेमचन्द्राचार्य यह वर्णन सुन कर अवाक् रह गये परन्तु जाँच करने पर ऐसा मालूम हुआ कि यह किसी साधु की कारस्तानी है | अतः आप के एक एक साधु को अपने पास बुला कर इस का रहस्य पूछा तो अन्त में गुणचन्द्रने सब रहस्य प्रकट किया जिस पर हेमचन्द्राचार्यने अपने शिष्य को बड़ा भारी उपालम्भ दिया । परन्तु अब अधिक पश्चाताप करना व्यर्थ था । हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल सहित आचार्य श्री कक्कसरि के समक्ष उपस्थित हो द्वादश भावृत से वन्दना की । इन के आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी । आपने गद्गद् स्वर से कहा क्षमसागर ! आप मेरे अपराध को क्षमा करिये । गुर्जरेश्वर कुमारपालने कहा कि - हे पूज्यप्रवर ! आप अपना बिरुद विचार मुझ पर अनुप्रद कर आप सर्व आचायों सहित एक बार नगर में अवश्य पधारिये । क्योंकि १ श्रीहेमसूरयः सद्योत्याकुलाः कुलदीपकाः । दर्शनस्य सात्वनायञ्चग्मुर्भूप समन्विता ॥ ४५८ ॥ पार्श्वे श्रीककसूरीणां दर्शनं मिलितं तदा । श्रीहेमसूरयः साँधुलोचना गदगद खराः ॥ ४५६ ॥ वंदनं द्वादशावर्त करि पादाब्जयोः । दत्वा लगित्वा स नृपास्तश्युर्भकिपरायणाः ॥ ४६० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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